ईट पत्थरों के प्रार्थनालय बनाम् दिल-ए-मंदिर
नेह अर्जुन इंदवार
पूजाघरों, प्रार्थनालयों, इंट पत्थरों से निर्मित घरों में भगवान, ईश्वर, या उपर वाले को ढूँढने वालों के बारे और क्या कहा जा सकता है ?
क्या ईट पत्थरों , सिमेंट, सजावटी सामग्रियों से बने इन घरों में सचमुच कोई देवी, देवता या भगवान रहते हैं ?
किसी यूनिवर्सल ईश्वरीय, शक्ति या उनके किसी प्रतिनिधि ने कब कहा कि “ऐ मनुष्य तुम खूब खर्च करके यूनिवर्सल ईश्वर के लिए शानदार घर बनाओ।” क्या मनुष्य के इतर अन्य प्राणियों को प्रकृति ने नहीं बनाया है ?
यदि ऐसा कोई नहीं कहा तो लोगों से जबरदस्ती या ठग फुसला कर चंदे लेकर या किसी धनपशु के काली कमाई से ऐसे सजावटी वाले घर, इमारत या अन्य आलय बनाने की जरूरत क्यों है ?
क्या ये घर सचमुच ईश्वरीय आलय होते हैं ? आपको विराट यूनिवर्स की प्राकृतिक शक्ति ने यूनिवर्स के सबसे नयाब तोहफा यानी आपका प्यारा सा उच्च क्षमतावान दिमाग दिया है। बचपन से ही शिक्षा के द्वारा इस दिमागी शक्ति को बढ़ाने के लिए आपने खूब मेहनत किया है। उसी तीक्ष्ण दिमाग से एक बार खूब समय लेकर चिंतन मनन कीजिए कि आप क्यों इन सजावटी घरों के फेरे में पड़े हुए होते हैं ?
यदि आप शिक्षित हैं तो इसका मतलब है कि आप के विवेक में चिंतन शक्ति है। दुनियाभर के आला दिमागों ने ईश्वर के बारे खूब चिंतन किया और उसे या तो इंसानों के लिए अप्राप्य माना या उसे सहजता से प्राप्य नहीं माना।
सवाल यह है कि क्या इन सजावटी इमारतों में कैज्युअल ढंग से जाकर कुछ पैसे रूपये, चढ़ावा आदि देकर आप किसी ईश्वर से कोई सम्पर्क स्थापित कर लेते हैं ? क्या यूनिवर्स, चांद तारे, गैलेक्सी, ब्लैक होल्स जैसे आश्चर्यजनक चीजों के जनक हर गली कूचे में बने इन पिद्दी सी इमारतों में रहने के लिए विवश, मजबूर हैं ? आखिर इन सजावटी इमारतों में आपकी जेब को हल्का करने की पूरी चाकचौबंद व्यवस्था क्यों बना कर रखी गई है ?
क्या आपका दिमाग सचमुच इन चीजों के पीछे के अर्थशास्त्रीय चालाकी को समझने में असमर्थ है ? यदि ऐसा है तो क्या आपको सचमुच सही शिक्षा हासिल हुई है? क्या खुद को ठगों के हाथों में सालों साल सौंपने वाले सचमुच शिक्षित और जागरूक इंसान होते हैं ?
दोस्तों दिमाग लगाईये, विवेक को जागृत कीजिए — ये घर, मकान किसी भगवान का नही होता है, वह तो इंसानों के जीने के लिए आय का एक दुकान है, साधन है। ब्रहमाण्ड में व्याप्त भगवान इन मंदिरों के न तो मोहताज हैं और न ही वहॉं रहने के लिए अभिशप्त हैं और न ही भगवान इन मंदिरों या किसी भी पूजा स्थल का गुलाम है।
मन की एकाग्रता, प्रार्थना के लिए क्यों ऐसे मकानों या दुकानों की जरूरत होती है ? यह पूरा ब्रहमाण्ड ही भगवान का घर है और वह हर जगह व्याप्त है। यदि आपके ह्रदय में ईश्वरी ममता, प्यार और श्रद्धा है तो यह आप इसे अपने, घर, मकान, दुकान, खेत, खलिहान, पार्क आदि कहीं भी बैठ कर उसे प्रार्थना, कार्य, व्यवहार के द्वारा व्यक्त कर सकते हैं। विश्वास कीजिए यहाँ आपकी जेब पर कोई डाका नहीं पड़ेगी।
धर्म के नाम पर तमाम शिक्षा प्राप्ति के बाद भी आप धंधेबाज चालाक लोगों के कब्जे में कब तक गुलाम रहेंगे ?
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