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चाय बागानों में कंगाली में जीवन जीते मजदूर

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चाय बागानों में कंगाली में जीवन जीते मजदूर

दिनांक 26 नवंबर 2024 को बंग्ला अखबार उत्तर बंग संवाद में एक ह्दय विदारक खबर छपी है। एक पंद्रह वर्षीय छोटे भाई ने अपने बड़े भाई को इंट मार कर घायल कर दिया, जिससे उसकी मृत्यु हो गई, क्योंकि घर में बचे थोड़े से चावल का भात बनाया गया था और बड़े भाई ने उसका अधिक हिस्सा खा लिया था। उनके पास चावल खरीदने के लिए पैसे नहीं थे, न ही इतना चावल घर में था कि उससे दोनों का पेट भर सके। बड़ा भाई बाहर मेहनत करके छोटे भाई को पाल रहा था। लेकिन घटना के दिन उन लोगों के पास थोड़े से चावल के सिवाय अन्न का और कोई दाना नहीं था। चाय बागानों में कंगाली में जीवन जीते मजदूरों की कहानियों का यह एक बानगी है। न जाने ऐसी कितनी घटनाएँ घटती होंगी, जो बाहर नहीं आ पाती हैं।

यह खबर पश्चिम बंगाल के अलिपुरद्वार जिले के कार्तिक चाय बागान की है। चाय बागानों में रहने वाले बगानियार कितने गरीब हैं और कैसे उनके पास भोजन के लिए पर्याप्त अन्न भी उपलब्ध नहीं होते हैं। यह अत्यत दुखद स्थिति है, कि चाय बागानों में रहने वाले परिवार कितने विकट स्थितियों में जिंदगी जी रहे हैं। भूख से उत्पन्न दुख और क्रोध ने एक अवयस्क तरूण को अपने पालक बड़े भाई को जान से मारने के लिए प्रेरित किया। यह हत्या एक छोटे भाई के द्वारा बड़े भाई की न होकर देश के नागरिकों की आर्थिक बदहाली के द्वारा किया गया हत्या है।

एक ओर देश के नेता कहते फिरते हैं कि देश जल्द ही 5 ट्रिलियन वाला अर्थव्यवस्था बन जाएगा और इसके साथ ही वह विश्व का दूसरा सबसे बड़ा अर्थ व्यवस्था बन जाएगा, वहीं इसके नागरिक भूख से व्याकुल होकर मुट्ठी भर अनाज के लिए एक दूसरे की जान ले रहे हैं। सवाल यह उठता है कि अर्थ व्यवस्था में आ रही तेजी का लाभ किनको मिल रहा है? धन और साधनों के असमान वितरण और कुव्यवस्था ने देश के गरीब तबके के जीवन को नरक में तब्दिल कर दिया है।

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इसके पूर्व भी अलिपुरद्वार के मधु चाय बागान में एक व्यक्ति की मृत्यु अन्न की कमी और भूख से हुई थी, जिसे प्रशासन ने अपनी चमड़ी बचाने के लिए बीमारी से हुई मृत्यु घोषित करने में कोई देरी नहीं की। चाय बागान के पाँच मजदूरों को कार्य से निकाल देने के बाद जलपाईगुड़ी के क्रांति प्रखंड में पाँच लोगों की मृत्यु होने के समाचार अखबारों में प्रमुखता से प्रकाशित हुआ था। करीबन दस वर्ष पूर्व भी पश्चिम बंगाल के चाय बागान क्षेत्र में भूखमरी से सौ से अधिक लोगों की मृत्यु का समाचार प्रकाशित हुआ था। आखिर चाय बागानों में भूख से होने वाले इतने मौत के क्या कारण हैं? जब तक इन कारणों पर विस्तार से विश्लेषण नहीं किया जाएगा, इस तरह की घटनाओं का कोई अंत नहीं होगा।

पश्चिम बंगाल में नियोजित ढंग से चाय मजदूरों का आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक शोषण किया जाता है और यह बात उन सभी रिपोर्टों में कही गई है, जिसमें यहां के सामाजिक आर्थिक दशाओं का सर्व और अध्ययन किया गया है। पश्चिम बंगाल के अलीपुरद्वार जिले में चाय बागान मजदूरों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के सोहराब अंसारी और ज़ेबा शीरीन ने अपने शोध पत्र Socio-economic Condition of Tea Garden Worker in Alipurduar District West Bengal (February 2016) में लिखा है “चूंकि मज़दूरी बहुत कम है, इसलिए मज़दूर अपने जीवन की बुनियादी ज़रूरतें भी पूरी नहीं कर पाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप वे गरीबी, अशिक्षा, भुखमरी आदि के दुष्चक्र में फंस जाते हैं। चाय बागानों में ताला लगने या काम को अस्थायी रूप से बंद कर दिए जाने पर चाय श्रमिकों की स्थिति और भी ख़राब हो जाती है। चूँकि मज़दूरों के पास खेती की ज़मीन और कमाई का कोई दूसरा ज़रिया नहीं है। चाय बागानों के बंद होने से वे अपना पेट भरने में असमर्थ हो जाते हैं और कई लोग भूख से मर जाते हैं।“ Ref. https://www.researchgate.net/publication/337593132 यह प्रथम शोधपत्र नहीं है। जीवन निर्वाह मजदूरी की अवधारणा इस मौलिक सिद्धांत पर आधारित है कि श्रमिकों को अपने और अपने परिवार के लिए एक सभ्य जीवन स्तर का खर्च उठाने के लिए पर्याप्त कमाई करनी चाहिए। हालाँकि कुछ लोग तर्क दे सकते हैं कि यह अवधारणा अमूर्त और विदेशी है, लेकिन इसकी जड़ें 1919 में सरकारों द्वारा अपनाए गए ILO संविधान की प्रस्तावना में निहित हैं, जिसमें “पर्याप्त जीवन निर्वाह मजदूरी के प्रावधान” सहित श्रम की स्थितियों में तत्काल सुधार की बात कही गई थी। आज, कंपनियाँ और सरकारें वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में सभ्य कार्य और सभ्य मजदूरी को आगे बढ़ाने की अपनी प्रतिबद्धता के आधार के रूप में जीवन निर्वाह मजदूरी को देख रही हैं।

The Global Living Wage Coalition ने Tea production in Assam and West Bengal: Are stakeholders ready to advance on living wages for workers?
(September 6, 2023) में लिखते हैं “जीवन निर्वाह मजदूरी की अवधारणा इस मौलिक सिद्धांत पर आधारित है कि श्रमिकों को अपने और अपने परिवार के लिए एक सभ्य जीवन स्तर का खर्च उठाने के लिए पर्याप्त कमाई करनी चाहिए। हालाँकि कुछ लोग तर्क दे सकते हैं कि यह अवधारणा अमूर्त और विदेशी है, लेकिन इसकी जड़ें 1919 में सरकारों द्वारा अपनाए गए International Labour organiza-tion के संविधान की प्रस्तावना में निहित हैं, जिसमें “पर्याप्त जीवन निर्वाह मजदूरी के प्रावधान” सहित श्रम की स्थितियों में तत्काल सुधार की बात कही गई थी। आज, कंपनियाँ और सरकारें वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में सभ्य कार्य और सभ्य मजदूरी को आगे बढ़ाने की अपनी प्रतिबद्धता के आधार के रूप में जीवन निर्वाह मजदूरी को देख रही हैं।

पश्चिम बंगाल के डुवार्स क्षेत्र में चाय उद्योग की स्थापना 1865 के बाद ब्रिटिश प्लान्टर्स के द्वारा किया गया था, जिसमें कई दशक बाद भारतीय कंपनियाँ भी चाय उद्योग के धंधे में उतरी। चाय उद्योग में श्रमिकों को हमेशा कम मजदूरी देकर कार्य कराया जाता रहा है। हालांकि 1980 के दशक तक अन्य उद्योग और चाय उद्योग के मजदूरी में बहुत अधिक अंतर नहीं था। लोगबाग बैंक और सरकारी लिपिकीय नौकरियों को छोड़ कर चाय बागान के लिपिकीय नौकरियों को प्राथमिक देते थे। लेकिन आज चाय बागानों में इतना कम वेतन है कि चाय बागानों में कार्य करने वाले लिपिकीय वर्ग भी आर्थिक शोषण से त्रस्त है, जबकि श्रमिक वर्ग को देश के सभी उद्योगों से कम वेतन दिया जाता है और उनका आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक शोषण अबाध रूप से चालू है। आज की तारीख (नवंबर 2024) में चाय मजदूरों को सिर्फ 250 रूपये दैनिक मजदूरी दी जाती है, जो पश्चिम बंगाल सरकार के द्वारा प्रत्येक छह माह में असंगठित कामगारों के लिए जारी न्यूनतम वेतन से बहुत कम है। पश्चिम बंगाल के सरकार ने 1 जनवरी 2024 से प्रभावी होने वाले नोटिफिकेशन में अकुशल श्रमिकों के लिए न्यूनतम वेतन 9210 (जोन बी) घोषित किया है, जो दैनिक 354 रूपये होता है। Source: Simpliance

जबकि कुशल कामगारों को 12258 रूपये मासिक दी वेतन दिया जाता है। संवैधानिक रूप से चुनी हुई सरकार के नाक के नीचे ही चाय मजदूरों का आर्थिक शोषण हो रहा है, उस पर सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी हुई है और चाय मजदूर भयानक गरीबी में जिंदगी बसर करने के लिए मजबूर हैं।

पश्चिम बंगाल में भूख से मरने के अनेक मामले सामने आने के बावजूद सरकार चाय मजदूरों के वेतन वृद्धि को पिछले 9 सालों से लटका कर रखी है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 43 के तहत सरकार जब भी चाहे चाय मजदूरों को सभ्य जीवन जीने के लिए पर्याप्त मजदूरी देने का प्रबंध कर सकती है और प्रत्येक छह माह में निकाले जाने वाले नोटिफिकेशन में चाय उद्योग को मजदूरों के वेतन को शामिल कर सकती है। लेकिन सरकार ने उन्हें मजदूरी से वंचित करने के लिए चाय मजदूरों के वेतन को एक ऐसी सलाहकार समिति को सौंप कर चैन की नींद सो रही है, जो पिछले 9 सालों में 20 बैठकें करने के बावजूद कानूनी रूप से मान्य दैनिक वेतन दर निर्धारित नहीं कर पायी है। कुल मिला कर सरकार चाय बागान के उद्योगपतियों के साथ मिल कर चाय मजदूरों को न्यूनतम वेतन से वंचित करने के लिए उसे एक ऐसी समिति के हवाले कर दी है, जो गैरजिम्मेदार और निर्लज्ज ढंग से मजदूरों के शोषण में भागीदार बनी हुई है। कुल मिला कर भयानक रूप से गरीबी झेल रहे मजदूरों के आर्थिक और सामाजिक शोषण के लिए पश्चिम बंगाल की सत्तारूढ़ पार्टी और सरकार ही मुख्यरूप से जिम्मेदार है।

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