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जरूरी है सवाल उठाना

जरूरी है सवाल उठाना

नेह अर्जुन इंदवार

क्या आपको हर प्रकार के सवाल करने में झिझक होती है?
यदि हाँ तो आप अपनी इस आदत को बदलने की कोशिश करें।

पूरी मानव सभ्यता मनुष्य के दिमाग में उठने वाले सवालों के जवाब ढ़ूढ़ने से ही विकसित हुई है।

गूगल कभी एक छोटी सी कंपनी हुआ करती थी, उसने मानवीय सवाल करने की आदत, सवाल करने की अनिवार्यता और इसकी विशाल दैनिक मात्रा को  पहचाना और सवाल करने वालों को प्रोत्साहित करने और उसका जवाब पाने को प्रेरित करने के लिए गूगल सर्च इंजिन बना डाला और महज कुछ ही वर्षों में वह एक बिलिनियर्स कंपनी बन गई।

सवाल करने की जरूरत को पूरा करने के लिए माक्रोसॉफ्ट जैसी कई और कंपनियों ने भी सवाल करने वाले, सवालों के जवाब खोजने वाले सर्च इंजन बनाया। सवाल करना कितना जरूरी है, उसे इन कंपनियों से शुरूआत से ही पहचाना और उसे ही कंपनी का मुख्य कार्य बना डाला।

सवाल करना क्यों जरूरी है?

सवाल करना बहुत जरूरी है। बच्चा सवाल करके ही अपने आपसपास की चीजों को पहचानना, जानना सीखता है। स्कूल में शिक्षा सवालों के साए में ही दी जाती है। यदि स्कूलों में सवाल न पूछे जाएँ तो विद्यार्थी क्या सीखेगा ? स्कूलों ही नहीं बल्कि जीवन के अधिकतर क्षेत्र में सीखने की मात्रा और क्वलिटी को मापने का जरिया सवाल और सवाल से उभर कर आने वाले जवाब ही होते हैं।  नयी चीजों को जानने की कोशिश करके उन पर गहन दृष्टि,  जानकारी और उनसे संबंधित सभी प्रकार का गहरा ज्ञान प्राप्त करना नये दृष्टिकोण और समाधान प्राप्त करने का यह एक उत्कृष्ट तरीका होता है।

सवाल करके ही दुनिया के तमाम वैज्ञानिक नये वैज्ञानिक सिद्धांतों का विकास या अविष्कार करते हैं। यूनान, मिश्र, भारत, चीन के इतिहास से संबंधित सभी दार्शनिक हर प्रकार के सवाल करते हुए दिखाई पड़ते हैं। उन्होंने पूरी दुनिया, पूरे ब्राह्मांड को समझने के लिए हवा, पानी, मिट्टी, मनुष्य और हर जीव के होने पर सवाल किए। उन्होंने जीवन के हर पहलू का लौकिक और अलौकिक अर्थ, सत्यता और नैतिकता को समझने के लिए लाखों सवाल सामने रखा और दुनिया में विकसित अधिकतर फिलॉसफी का आधारभूत ढाँचा तैयार किया। यदि वे प्रश्न करने की आदत और संस्कृति विकसित नहीं करते तो दुनिया में फिलॉसफी का आधार ही तैयार नहीं होता। फिलॉसफी के विकास के बिना समाज में धर्म, नैतिकता, सामाजिकता, शासन, प्रशासन का विकास ही नहीं हो पाता।

किसी भी क्षेत्र के उद्यमी, नवप्रवर्तक (Innovators) प्रतिभाशाली विचारक, चिंतक (Brilliant thinkers), अनुसंधान करके जंगल और खेतों में नये पौधे ढ़ूढ़ने वाला वैद्य या अनुसंधान करके नयी चीजों का अविष्कार या विकास करने वाला अनुसंधानक या बाजार में ग्राहकों की आवश्यकता से परिचित होने वाला सेल्समैन सभी सवालों के माध्यम से ही अपनी नये रास्ते तलाशते हैं और समस्याओं का समाधान करते हैं। किसी भी क्षेत्र में गहरा ज्ञान प्राप्त करने और उस पर गहन दृष्टि प्राप्त करने के लिए बिना सवालों के बीहड़ों से गुजरे और कोई रास्ता नहीं होता है।

सवाल करने से व्यक्ति को जवाब मिलने की संभावना बढ़ जाती है। चाहे वह खुद के चिंतन से आए या बाहर से। सवाल और जवाब संवादहीनता (Communication Gap)  को खत्म करता है। नये संबंध या परिचय सवाल-जवाब से ही शुरू होता है। चर्चा और परिचर्चा, बहस आदि से छुपे हुए नये दृष्टिकोण से वाकिफ होने का अवसर मिलता है और जानकारी और ज्ञान के क्षेत्र में विकास और विस्तार होता है।

गूगल के मुख्य परिचालक अधिकारी शिम्ड कहते हैं कि हम कंपनी को सवालों पर चलाते हैं। जवाबों पर नहीं। यदि आप गूगल पर एक सवाल करते हैं तो संभव है कि आपको आपके सवालों पर दस हजार जवाब मिल जाएँगे। जाहिर है कि दस हजार जवाबों से आपके सवालों के हर पहलू के जवाब मिलने की संभावना बढ़ जाएगी। एक सवाल से हजारों नई जानकारी मिलने की संभावना बहुत अधिक होती है।

कुछ लोगों को सवाल करना अच्छा नहीं लगता है। कुछ नेताओं को जनता, मीडिया का सवाल करना अच्छा नहीं लगता है। वे सवालों से बचने की भरसक कोशिश करते  हैं। जिन्हें सवाल करना अच्छा नहीं लगता है, उन्हें लगता है कि वे सब कुछ जानते हैं और सवाल करने से उनकी ज्ञान और विद्वता की बेइज्जती होगी। कई लोगों को सवाल पूछने में बहुत झिझक होती है, मानो वे सवाल पूछ कर दूसरों के सामने कमतर हो जाएँगे। कई बार वे सवाल करने की महत्व के बारे ही  नहीं  जानते हैं। कई बार लोग लोकलज्जा या बुदजिली के कारण भी सवाल नहीं उठाते हैं। 

पिछड़े अविकसित समाजों में सवाल करने की संस्कृति यदि विकसित हो जाए तो उन्हें अपने पिछड़ेपन का सामुचित जवाब मिलेगा और विकास के कमतर अवसर (Lesser opportunity)  पर अनेक जवाब मिल जाएँगे। यदि सामाजिक, आर्थिक और  राजनैतिक रूप से शोषित जनता जिम्मेदार नेताओं से सरेआम सीधे सवाल करना शुरू कर दें तो उनकी सामाजिक आर्थिक राजनैतिक स्थिति बदल सकती है। स्थिति में गुणात्मक परिवर्तन लाने के लिए सवाल उठाना मुख्य कारक बन सकते हैं।

पूरी सभ्यता में सवाल करने के अधिकार को मौलिक अधिकार माना गया है। यही अधिकार व्यक्ति और समाज को अंधकार के गहन समुद्र से निकाल कर जवाबों के प्रकाश से जगमगा दिया है। दुनिया के हर चीज में, हर क्षेत्र में सवालों के माध्यम से ही जवाब तैयार करके स्थिति में परिवर्तन लाया गया है। पूँजीवादी व्यवस्था की खामियों को या सम्यवाद की समस्याओं को सवाल करने की संस्कृति ने ही परिवर्तन करने के लिए मजबूर किया है। भारत में जनता के सवाल करने, जवाब (जानकारी) पाने के लिए लोकतांत्रिक अधिकार को बनाए रखने के लिए सूचना के अधिकार कानून बनाया गया है। अमेरिका सहित पश्चिम के अधिकतर देशों में सूचना के अधिकार पर कानून बने हुए हैं। लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर संसद में सवाल पूछने के अधिकार को सबसे बड़ा महत्वपूर्ण व्यवस्था माना गया है।

कुछ जगहों पर सवालों का उत्साह पूर्वक स्वागत किया जाता है, जैसे स्कूल, कालेज, प्रशिक्षण संस्थान, पर्यटन स्थल आदि में। लेकिन कुछ स्थलों में उत्सुकता भरे सवालों का बिल्कुल स्वागत नहीं किया जाता है। धर्म स्थल , शासन के सर्वोच्च स्थल आदि ऐसे ही स्थल हैं। इन जगहों में हर प्रकार के सवालों को पूछना मना है, क्योंकि उनके पास या तो कोई जवाब नहीं होते हैं या सवालों से वे पूरी तरह असहज हो जाते हैं। सवालों से उनके पैर की जमीन खिसक जाती है।  अनेक सवालों से उनकी पूरी वजूद पर ही सवालिया निशानियाँ लग जाती है और उनकी वजूद खतरे पर आ जाती हैं।

सवाल करने की प्रक्रिया और संस्कृति ने धर्म और सामाजिक कुरीतियों, आडंबरों, असत्यताओं, पाखण्ड, ढकोसलों, नकली अवधारणों, झूठ के मायावी महलों को मजबूर कर दिया है कि वे अपने में सुधार लाएँ और गलतियों को खत्म करें और सत्य का सामना करें। शासन, प्रशासन स्तर पर सवाल करने की संस्कृति, अधिकार और कर्तव्य की एक नयी श्रृखंला पर चिंतन करने के लिए विवश कर दिया है।

सवालों के आधार पर ही समाज और संसार में सकरात्मक परिवर्तन के लिए स्थिति और माहौल तैयार होता है। सवाल करने की विकसित संस्कृति ने मनुष्य के जीवन पर ही नहीं, बल्कि मनुष्य के संपर्क में आने वाले जीव-जंतुओं तक के जीवन को प्रभावित किया। आज सड़कों पर भालू और बंदर के खेल दिखना बंद हो गए हैं। सर्कसों में हाथियों के करतब का प्रदर्शन भी बंद हो गया है। पूरी दुनिया में कानून के माध्यम से गरीबों, मजबूर लोगों की बेगारी, गुलामी बंद हो गई है। गरीबों तक को वोट देकर शासक चुनने का अधिकार मिला है। सवालों के घेरे में आने के बाद ही दुनिया के हर क्षेत्र में कुकुरमुत्ते की तरह उगे हुए जमींदार, सामंत और राजा, महाराजा और उनके चोंचले खत्म हो गए और प्रजातांत्रिक व्यवस्थाओं का जमाना आया।

सवालों के घेरे में सबसे अधिक धार्मिक और सामाजिक नियम और कानून आए। धर्म के नाम पर निठल्लों, कामचोरों का शोषण, भेदभाव, अन्याय, कुरीति, आडंबर, ठगी, मानसिक गुलामी से परिपूर्ण धार्मिक व्यवस्था और उसकी स्वीकृति खत्म हुए। सवालों के घेरे से ही गुजर कर समानता, न्यायपूर्ण व्यवस्थाओं का सृजन विकसित हुए और पूरी दुनिया के हर संसाधनों को मनुष्य जाति की सामूहिक धरोहर और सम्पदा मानी गई। सवालों के घेरे में आने के बाद ही व्यावहारिक स्तर पर नैतिकता के नये नियम बनाए गए और समाज को रेग्युलेट करने के नियम और कानून बने। 

यदि कोई शासक जनता के सवालों का जवाब देने के लिए हमेशा तैयार रहता है तो यह माना जाता है कि वह एक अच्छा शासक है और जनता और शासक के बीच की संवादहीनता को खत्म करने के लिए हमेशा तैयार रहता है। लेकिन यदि कोई शासक जनता के सवालों से हमेशा कन्नी काट कर रहता है, तो यह अपने आप स्पष्ट हो जाता है कि वह शासक और शासन जनता के प्रति उतरदायित्व की भावना से कार्य नहीं कर रहा है और उनके पास जनता के सवालों का पर मुकम्मल जानकारी देने लायक कोई जवाब नहीं है। सवाल से बचने वाले अच्छा शासक नहीं होते हैं। 

लोकतंत्र, शासन और प्रशासनिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए जनता और शासक के बीच सवाल जवाब मुख्य कड़ी होती है। इसी कड़ी को बनाए रखने के लिए मीडिया को संवैधानिक अभिव्यक्ति अधिकार का माध्यम माना गया है और मीडिया के माध्यम से चर्चा, परिचर्चा और बहस-विमर्श को कानूनी मान्यता दी गई है। जनता मीडिया के माध्यम से ही हर प्रकार के आलोचनात्मक सवालों को सार्वजनिक मंचों पर लाते हैं और उस पर सामूहिक चर्चा, बहस और विमर्श करके के लिए महौल तैयार करते हैं। जिन्हें सवालों से एलर्जी होती है या जिनके स्वार्थी लक्ष्यों पर कुठाराघात होता है, वह हर सवाल को सामने आने से रोकने के लिए एड़ी-चोटी की ताकत लगा देते हैं। वे सवाल करने वालों पर ही नकरात्मक सवाल खड़े करते हैं।

आधुनिक काल में सवाल कितना जरूरी है, सवालों के जरूरत की मात्रा का प्रतिशत कितनी बड़ी हो सकती है, इसे गूगल में रोज आने वाले सवालों से सरसरी तौर पर मापा जा सकता है। लेकिन, व्यक्तिगत स्तर, मुख्यधारा मीडिया, सोशल मीडिया, कार्यालयों, बाजारों, अंतर्राष्ट्रीय संवादों, पत्रचारों, ईमेल, चिट्टियों आदि में उभरते हुए सवालों की गणना करना संभव नहीं है। ये सभी सवाल किसी न किसी जवाब के लिए दागे जाते हैं और जब जवाब मिलता है तो कई सवालों का समाधान भी होता है। वहीं उससे नये सवाल भी उभर कर आते हैं। रोज करोड़ों सवालों के जवाब मिलते जाते हैं, लेकिन रोज नये करोड़ों सवाल फिर से उभर कर निकलते हैं।

सवालों का रोज उभरना सभ्यता के विकास का द्योतक है। जिस दिन सवाल नहीं उभरेगा, उस दिन से दुनिया  भी रूक जाएगी।

कुछ लोगों को कुछ सवालों से नफरत होती है, लेकिन ऐसे लोगों को दूसरे सवालों से प्यार भी होता है। सवाल करना और जवाब करना जिंदा कौम और सभ्यता की निशानी है। जो सवाल करना नहीं जानता है, वह जवाब पाना भी नहीं जानता है। जाहिर है कि सवालों से मिलने वाले अंतरदृष्टि से भी ऐसे लोग वंचित रहते हैं। वंचित समाजों की निर्माण प्रक्रिया ऐसे ही परिस्थियों से होकर गुजरता है। कभी सूरज को पृथ्वी का चक्कर लगाने वाला प्रकाशपूँज समझा जाता था। लेकिन उभरते सवालों ने इसकी प्राचीन अवधारणा को खत्म करने में मुख्य भूमिका निभाया। हर काल में मूलभूत सवाल करने वालों के जवाब बंद करने की कोशिश भी यथास्थिति वाले करते रहे  हैं और भविष्य में भी यह स्थिति बदलेगी नहीं। लेकिन सवाल आने कभी बंद नहीं होते हैं, चाहे उसे रोकने वाले कितना भी जोर लगा लें। 

वंचना और पिछड़ेपन के शिकार होने से बचने के लिए सवाल करना सीखें। आगे बढ़ने के लिए सवाल करना सीखें। मुद्दयों से लड़ने के लिए सवाल करना सीखें। जानकारी और ज्ञान प्राप्त करने के लिए सवाल करना बहुत जरूरी है। सवाल करना सीखने की प्रथम प्रक्रिया है। जो सीखता है, वह आगे बढ़ता है। जो सवाल करता है, उसे जवाब मिलता है। 

तो आईए आज से ही दुनिया के हर मुद्दे पर सवाल करना शुरू करें। नेह। 

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1 comment

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Oli

धन्यवाद आपके महत्वपूर्ण लेख के लिए। सवाल करना बहुत जरूरी है और इसे हमें अपने बच्चों को सीखाना चाहिए।

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