न लें 5 डेसीमल जमीन और रूपये
नेह अर्जुन इंदवार
पश्चिम बंगाल के चाय बागानों में कार्य करने वाले बगानियारों ने सरकरा द्वारा उनके पूर्वजों से The West Bengal Estate Acquisition Act 1953 द्वारा गैर कानूनी रूप से छीन कर बागान मालिकों को बागान क्वार्टर बनाने के लिए सौंपे गए अपनी पैत्रिक भूमि की वापसी की मांग की है। इसके लिए वे पिछले 15-20 साल से सरकार से अनुनय विनय कर रहे हैं और इसके साथ विभिन्न प्रकार के कानूनी रूप से मान्य आंदोलन भी कर रहे हैं। वे जिस जमीन पर 150 वर्षों से रह रहे हैं, उसी जमीन का कानूनी रूप से मान्य खतियान का कागज मांग रहे हैं। उन्होंने कभी भी सरकार से 5 decimal जमीन की मांग नहीं की थी। पश्चिम बंगाल सरकार ने 1 अगस्त 2023 को बागानियारों को सिर्फ 5 डेसीमल जमीन देने का नोटिफिकेशन निकाला है। बगानियारों के द्वारा सरकार के इस कदम का भारी विरोध किया जा रहा है। लेकिन 2024 में लोकसभा चुनाव के पूर्व सरकार और प्रशासन ने बगानियारों की इच्छा के विरूद्ध उन पर 5 decimal जमीन थोपने की सारी कार्रवाई कर रही थी। इसके लिए राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं द्वारा उन्हें सहायता दी जा रही थी। मजदूरों के विरोध को देखते हुए सरकार ने 5 डेसीमल जमीन के साथ घर बनाने के लिए 1 लाख 20 हजार रूपये भी देने की घोषणा की। पार्टी और प्रशासन की घोषणा से प्रभावित होकर हजारों बगानियारों ने 1 लाख 20 हजार के पहली किस्त 60 हजार रूपये लेने के लिए सरकारी कार्यक्रमों में भीड़ लगा लिए थे।
प्रशासन और पार्टी कार्यकर्ताओ के पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं है कि क्यों पश्चिम बंगाल सरकार ने दार्जिलिंग और कालिम्पोंग जिलों में L &LR and RR & R Department’s Notification No. 3076-LP Dated 01/08/2023 द्वारा GTA Area में अगले आदेश तक सर्वे का काम रोक देने का आदेश दिया था और क्यों इसे मैदान के चाय बागानों में लागू करने की कोशिश की जा रही है?
बगानियारों को the Limitation Act, 1963 के सेक्शन 7 के तहत पहले ही अपने पूरे घर भिट्टा की जमीन को Adverse possession legal principle के तहत पाने का पूरा अधिकार है। उनके इस अधिकार का हनन सरकार नहीं कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने कई निर्णयों में इस अधिकार की रक्षा की है।
यह तथ्य बहुत महत्वपूर्ण है कि 1965 में भूटान की जमीन को ब्रिटिश इंडिया राज्य में मिलाया गया और डुवार्स में जब चाय के बागान स्थापित किए जा रहे थे, तब यहाँ बहुत घना जंगल था और भूमि संबंधी की कानून भी लागू नहीं था। ब्रिटिश प्लान्टर्स सिर्फ चाय बागान बनाने के लिए सरकार से लीज पर जमीन ले रहे थे। उन्होंने कभी भी बगानियारों को बसाने के लिए कोई जमीन लीज में नहीं ली थी। चाय बागानों में अस्थायी रूप से कार्य करने वाले बगानियारों ने घने जंगलों को साफ करके खुद के लिए घर और खेती करने लायक जमीन बनाए थे और वे उन गाँवों में पारंपारिक खेती बाड़ी करके जीवन यापन करते थे। कानूनन वह जमीन उनकी अपनी थी और उसका बागान से कोई संबंध नहीं था। लेकिन 1951 में जब प्लान्टेशन एक्ट बना और उसके तहत बगानियारों के लिए क्वार्टर बनाने की बातें आईं तो सरकार ने बागानों के पास बने गाँवों का The West Bengal Estate Acquisition Act 1953 के तहत अधिग्रहण करके चाय बागान प्रबंधनों को वह जमीन सौंप दिया, जिसमें क्वार्टरों का निर्माण किया गया। लेकिन गाँव वालों को उक्त जमीन को कभी कोई Compensation नहीं मिला। कानूनी रूप से बिना मुआवजा दिए किसी भी जमीन का हस्तांतरण नहीं होता है। इन जमीनों का हस्तांतरण की प्रक्रिया कभी भी पूरी नहीं हुई है। इसलिए सरकार या बागान प्रबंधन का इन जमीनों पर कोई हक नहीं है। यह जमीन आज भी गाँव वालों का है और वे उसी जमीन को सरकार से वापस मांग रहे हैं।
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