प्रोटीन है बेहद जरूरी
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प्रोटीन है बेहद जरूरी

प्रोटीन है बेहद जरूरी

Dr Navmeet Nav

प्रोटीन एक बेहद जरूरी मैक्रो न्यूट्रीएंट है। एथलीट और बॉडी बिल्डर या फिटनेस से जुड़े लोग तो इसकी अहमियत समझते हैं लेकिन आमजन में प्रोटीन को लेकर संशय बना रहता है। कुछ लोगों को लगता है कि जब बॉडी ही नहीं बनानी तो प्रोटीन की इतनी जरूरत नहीं है। जबकि प्रोटीन हमारे शरीर के बिल्डिंग ब्लॉक्स यानी इमारत खंडों का कार्य करते हैं। जैसे इमारत ईंटों से बनती है वैसे ही हमारे शरीर के उत्तक प्रोटीन से बनते हैं। रोजमर्रा की गतिविधियों के लिये हमें प्रोटीन, कार्बोहायड्रेट और फैट तीनों ही मैक्रोनुट्रियंट्स पर्याप्त मात्रा में चाहिये होते हैं। प्रोटीन कोशिकाओं के निर्माण और रिपेयर के लिये और कार्बोहायड्रेट व फैट ऊर्जा के लिये। साथ में मिनरल्स और विटामिन्स। और भरपूर मात्रा में पानी। बस।

लेकिन यह बस पूरा करना भी बहुत मुश्किल हो जाता है। क्योंकि हमें पता ही नहीं होता कि कितनी मात्रा में क्या लेना है। तो आज प्रोटीन पर बात करेंगे। बहुत टेक्निकल डिटेल में नहीं जायेंगे। बिलकुल काम की बात करेंगे।

सबसे पहले तो कितना प्रोटीन चाहिये? अगर आप बॉडी बिल्डर, जिम गोअर या प्रोफेशनल एथलीट नहीं हैं तो आपको अपने वजन के प्रति किलोग्राम के साथ एक ग्राम प्रोटीन चाहिये। मसलन आपका वजन 70 किलोग्राम है तो आपको 70 ग्राम के आसपास प्रोटीन रोज खाना पड़ेगा।

अगर आप एथलीट हैं या बॉडी बिल्डर हैं तो? तो आपने रिसर्च कर ही रखी होगी। बाकी आमजन को बता दूँ कि बॉडी बनाने के लिये रोज 1.6 से 1.8 ग्राम प्रोटीन प्रति किलो ग्राम बॉडी वेट के हिसाब से चाहिये। इससे ज्यादा कोई एक्स्ट्रा फायदा नहीं पहुंचायेगा।

यह कहाँ से मिलेगा?

प्रोटीन दो तरह का होता है। एनिमल प्रोटीन यानी जानवरों से मिलने वाला और प्लांट प्रोटीन यानी पेड़ पौधों से मिलने वाला प्रोटीन। राइट।

एनिमल प्रोटीन में आते हैं मांस, मछली, दूध व दुग्ध उत्पाद और अंडा।

प्लांट प्रोटीन में आते हैं अनाज, दालें, सोयबीन आदि।

अब इनमें अंतर क्या है?

देखो। प्रोटीन बने होते हैं अमीनो एसिड्स से। अमीनो एसिड्स 20 प्रकार के होते हैं जिनमें से 11 प्रकार के अमीनो एसिड्स हमारा शरीर खुद बना लेता है, जिन्हें कहते हैं नॉन एसेंशियल यानी गैर जरूरी अमीनो एसिड्स। 9 प्रकार के वे होते हैं जो हमें अपने भोजन से ग्रहण करने पड़ते हैं। इन्हें एसेंशियल यानी जरूरी अमीनो एसिड्स कहा जाता है। अब जो एनिमल बेस्ड प्रोटीन होते हैं उनमें सभी के सभी 9 अमीनो एसिड्स मौजूद होते हैं। लेकिन प्लांट बेस्ड प्रोटीन में कोई न कोई अमीनो एसिड कम मिलेगा। इसलिये प्लांट प्रोटीन को सम्पूर्ण प्रोटीन नहीं माना जाता। लेकिन प्रकृति ने इसका भी इलाज किया हुआ है। जैसे दालों में जो अमीनो एसिड कम होता है वह अनाज में मिल जाता है और जो अनाज में कम होता है वह दालों में मिल जाता है। हालांकि सोयबीन एक ऐसा प्लांट बेस्ड भोज्य है जिसमें सभी 9 अमीनो एसिड्स होते हैं।

लेकिन यहाँ पेंच फँसता है बायो अवेलेबिलिटी यानी जैव उपलब्धता का। सोयबीन सहित प्लांट बेस्ड प्रोटीन की जैव उपलब्धता बहुत ही कम होती है। जैसे दालों में कहने को तो प्रति 100 ग्राम 20 ग्राम प्रोटीन होता है लेकिन यह पूरा का पूरा प्रोटीन हमारे शरीर को मिलता ही नहीं। बल्कि बहुत ही कम मिलती है।

यानी अगर आपने 100 ग्राम दाल खायी। तो कहने को तो आपने 20 ग्राम प्रोटीन ले लिया लेकिन आपके शरीर ने इसका सिर्फ आधा ही इस्तेमाल किया, बाकी आधा वेस्ट गया। ऐसे ही अनाज के साथ भी है। साथ ही अनाज और दाल में कार्बोहायड्रेट भी बहुत ज्यादा होते हैं। बल्कि यह कहना ज्यादा सही है कि अनाज तो है ही, साथ में दाल भी प्रोटीन की बजाय कार्बोहायड्रेट का बेहतर स्रोत हैं।

बहरहाल। प्लांट प्रोटीन में हमारे पास एक बहुत ही बेहतर स्रोत है जिसको अक्सर विलेन बना दिया जाता है। वह है सोयबीन। विलेन इसलिये क्योंकि एक तो कच्ची सोयबीन में एंटी नुट्रियंट्स होते हैं जो इसके पूरे पोषक तत्वों को शरीर में जाने ही नहीं देते। दूसरा इसमें फाइटोएस्ट्रोजन्स होते हैं जो एस्ट्रोजन यानी महिलाओं के मुख्य यौन हॉर्मोन जैसे होते हैं। इसलिये कुछ लोगों को डर होता है कि इसका सेवन उनके शरीर में महिलाओं जैसे गुण ला देगा।

तो बात ये है कि एंटी न्यूट्रीएंट्स को तो हम कुकिंग, फरमेंटिंग आदि के द्वारा बहुत कम स्तर पर ला सकते हैं। जैसे टोफू की जैव उपलब्धता काफ़ी अच्छी होती है। या सोय चंक्स यानी सोयबीन की बड़ियाँ। इनको अगर हम उबले हुए गर्म पानी में 10 -12 मिनट डुबो कर रख लें तो इसकी जैव उपलब्धता लगभग एनिमल प्रोटीन के बराबर हो जाती है। रही बात फाइटोएस्ट्रोजन्स की तो वह बहुत ही कम मात्रा में होता है और मॉडरेटली यानी 50 ग्राम सोय चंक्स या टोफू रोज खाने से उसका हमारे शरीर पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। अति तो फिर हर चीज की बुरी होती है। खैर 50 ग्राम सूखे सोय चंक्स आपको लगभग 25 ग्राम प्रोटीन देंगे। और इतना ही टोफू 15-17 ग्राम प्रोटीन देगा। अगर आपको थायरॉयड से सम्बंधित समस्याएं हैं तो सोय उत्पादों से परहेज करें।

दालें, अनाज आदि भी आपको कुछ मात्रा में प्रोटीन दे देंगे लेकिन इनसे आपकी जरूरत पूरी नहीं होगी। क्योंकि आप, सत्तर ग्राम या जितना भी प्रोटीन आपको आपके वजन के हिसाब से चाहिये, सिर्फ दाल या सोय चंक्स खाकर पूरा नहीं कर सकते। क्योंकि एक तो इनमें कैलोरी बहुत अधिक हो जायेगी, जो अंततः आपके शरीर में फैट बढ़ायेगी और दूसरा अन्य पोषक तत्वों जैसे बहुत से विटामिन्स और मिनरल्स से भी आप वंचित रह जायेंगे।

तो फिर इसका हल?

इसका हल है एनिमल प्रोटीन ग्रहण करना। अगर आप वेजिटेरियन हैं तो दुग्ध उत्पाद आपके मित्र हैं। दूध, पनीर, दही। और अगर आपको मांस व अंडे से परहेज नहीं है तो फिर सबसे बेहतर प्रोटीन का स्रोत है अंडा, और फिर चिकन। अंडा सबसे बेहतर इसलिये है क्योंकि इसमें सभी अमीनो एसिड्स तो होते ही हैं, साथ में इसकी जैव उपलब्धता भी गोल्ड स्टैण्डर्ड होती है। यानी हम दूसरे सभी प्रोटीन स्रोतों की जैव उपलब्धता को अंडे की तुलना में देखते हैं। जो अंडे के जितना नजदीक होगा उतना ही बेहतर होगा। उसके बाद मछली। मछली में उच्च गुणवत्ता के प्रोटीन के साथ हार्ट फ्रेंडली ओमेगा 3 फैटी एसिड भी होते हैं। इन सबसे आपको लीन प्रोटीन यानी बिना अधिक फैट वाला प्रोटीन मिलेगा। किस स्रोत में कितना प्रोटीन मिलता है, वह इंटरनेट पर उपलब्ध है। अगर आप हृदय से सम्बंधित रोगों से ग्रसित हैं तो आप एनिमल प्रोडक्ट्स कम खायें। खासतौर पर लाल मांस। और अंडे की जर्दी।

तो यह तो हुआ कि प्रोटीन के स्रोत क्या हैं। लेकिन इनको खाना कैसे है? सबसे जरूरी बात। प्रोटीन के किसी एक स्रोत पर निर्भर नहीं रहना चाहिये। हमें संतुलित भोजन करना चाहिये जिसमें प्रोटीन के 3-4 स्रोत हों। जैसे दालें, सोय चंक्स, टोफू, अनाज, दूध, दही, पनीर, अंडा, मछली, मांस। अपनी आर्थिक स्थिति, उपलब्धता और भोजन सम्बन्धी आदतों (वीगन, वेजिटेरियन, मीट ईटर) के हिसाब से। सारा का सारा एक साथ न तो हम ग्रहण कर सकते हैं और न ही करना चाहिये। इसलिये हमारे ब्रेकफास्ट, लंच और डिनर तीनों में प्रोटीन का कोई पर्याप्त स्रोत जरूर होना चाहिये।

और प्रोटीन सप्लीमेंट्स जैसे व्हे प्रोटीन पाउडर, सोय प्रोटीन पाउडर या अन्य सप्लीमेंट। उनका क्या?

बात ये है कि सप्लीमेंट का अर्थ होता है पूरक आहार। मतलब यह तब दिया जाता है जब हम अपने भोजन से प्रोटीन पूरा न कर पा रहे हों। अगर आप अपने भोजन से प्रोटीन पूरा कर पा रहे हैं तो आपको इसकी जरूरत ही नहीं है। दूसरा जब आप संतुलित भोजन से प्रोटीन लेते हैं तो उसमें प्रोटीन के साथ दूसरे पोषक तत्व भी मिलते हैं जो हमारे सम्पूर्ण स्वास्थ्य व शरीर की कार्यप्रणाली के लिये जरूरी होते हैं। प्रोटीन पाउडर सप्लीमेंट से सिर्फ प्रोटीन मिलता है। दूसरा यह महँगा भी होता है। इसलिये सबसे पहले अपने भोजन से प्रोटीन पूरा कीजिये जोकि बहुत मुश्किल भी नहीं है। फिर अगर जरूरत हो तो सप्लीमेंट ले सकते हैं। लेकिन यह भी तब जरूरत पड़ेगी जब आप प्रोफेशनल एथलीट हों या बॉडी बिल्डर हों। उसमें भी पहले भोजन और फिर जरूरत हो तो (जरूरत शब्द पर जोर दिया जाये) प्रोटीन सप्लीमेंट।

बहरहाल। यह थी आपकी प्रोटीन की जानकारी।

सहमत नहीं हैं तो ट्रोल न करें। सिम्पली इग्नोर करें।

फ़ूड हैबिट्स जैसे मीट ईटिंग, वेजिटेरियन या वीगन आदि पर बहस नहीं करूंगा। यह किसी का भी जनवादी अधिकार है कि वह क्या खाता है।

साभार – फेसबुक

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