बंगाल विधेयक: बलात्कार को हत्या के बराबर मानने का प्रस्ताव
कोलकाता के आर जी कर मेडिकल कालेज अस्पताल में एक प्रशिक्षु डाक्टर की बलात्कार और हत्या से थर्राए समाज ने इन अपराधों के लिए कठोर सज़ा की मांग की है। इन मांगों के बीच पश्चिम बंगाल की ममता सरकार ने विधान सभा में बलात्कार को हत्या के बराबर मानने के लिए एक नया विधेयक लायी है। ममता बनर्जी सरकार द्वारा प्रस्तावित नए राज्य विधेयक में बलात्कार को हत्या के बराबर अपराध मानते हुए अपराधियों के लिए मृत्युदंड या आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान किया गया है। विधेयक में विशेष रूप से यौन अपराधों के मामलों में मुकदमों को समयबद्ध तरीके से पूरा करने का भी प्रावधान है। हालांकि कई पर्यवेक्षक इसे सत्तारूढ़ पार्टी की राजनैतिक रणनीति के रूप में भी देख रहे हैं।
राज्य के कानून विभाग के अधिकारियों के अनुसार, इस विधेयक में बलात्कार की सभी घटनाओं को – चाहे पीड़िता जीवित रहे या नहीं – हत्या के समान माना जाएगा। इसके तहत दोषियों को मृत्युदंड या आजीवन कारावास की सजा दी जा सकती है। साथ ही, दोषियों के परिवार पर भारी जुर्माना लगाने का भी प्रावधान है।
विधेयक में निर्णय प्रक्रिया को तेजी से निपटाने की बात भी कही गई है। इसमें प्रावधान किया गया है कि यदि पर्याप्त और निर्णायक साक्ष्य उपलब्ध हों, तो अपराध की तारीख से 15 कार्य दिवसों के भीतर फैसला सुनाया जाएगा। यह दिशा विधेयक, 2019 से प्रेरित है, जिसमें 21 कार्य दिवसों के भीतर फैसला सुनाने का प्रावधान था, लेकिन वह अब भी राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए लंबित है।
राज्य विधेयक में कहा गया है कि बलात्कार के मामलों की सुनवाई फास्ट-ट्रैक अदालतों में होनी चाहिए और अपराध की सूचना के छह घंटे के भीतर पीड़िता की मेडिकल जांच होनी चाहिए। आरोपी को भी गिरफ्तारी के तुरंत बाद मेडिकल जांच से गुजरना होगा। विधेयक का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि जांच और न्यायिक प्रक्रिया एक साथ चलें और पीड़िता या उसके परिवार को न्याय मिलने में देरी न हो।
हालांकि, कुछ संवैधानिक विशेषज्ञ इस विधेयक के प्रभाव पर संदेह व्यक्त कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश, न्यायमूर्ति अशोक कुमार गांगुली ने कहा कि आपराधिक कानून संविधान की समवर्ती सूची का विषय है, और जांच व निर्णय की प्रक्रिया को समयबद्ध नहीं किया जा सकता है। उनका कहना है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का यह कदम एक राजनीतिक रणनीति हो सकता है, जो लोगों का ध्यान वर्तमान मुद्दों से हटाने का प्रयास है।
वर्तमान भारतीय आपराधिक कानून के तहत कुछ मामलों में मृत्युदंड का प्रावधान है, जैसे 12 वर्ष से कम आयु की लड़कियों के साथ बलात्कार, या बार-बार अपराध करने वाले मामलों में।
कुछ संवैधानिक विशेषज्ञ इस विधेयक पर अलग राय व्यक्ति कर रहे हैं। बलात्कार के मामलों को हत्या के अपराध के बराबर क्यों नहीं माना जा सकता, इस पर वे निम्नलिखित राय व्यक्त करते हैं।
पीड़ितों और समाज पर उनके अलग-अलग प्रभावों के कारण बलात्कार और हत्या को एक जैसे अपराध नहीं माना जा सकता है। ये दोनों ही अलग-अलग अपराध हैं। बलात्कार गंभीर मनोवैज्ञानिक और शारीरिक नुकसान पहुंचाता है, लेकिन पीड़ित की मृत्यु नहीं होती।
दूसरी ओर, हत्या के परिणामस्वरूप जीवन की अपरिवर्तनीय हानि होती है, जिसे कानूनी और सामाजिक संदर्भों में अधिक गंभीर माना जाता है। इसलिए, जबकि दोनों अपराध जघन्य हैं, उनके अलग-अलग प्रभाव अलग-अलग कानूनी उपचारों को उचित ठहराते हैं, जो अक्सर सजा कानूनों और सार्वजनिक धारणा में परिलक्षित होते हैं। हालांकि कुछ मध्य पूर्वी देश – ईरान, सऊदी अरब आदि सख्त शरिया कानून के अधीन बलात्कार के लिए मृत्युदंड लागू करते हैं और इसे हत्या के समान ही गंभीर मानते हैं। ज़्यादातर देशों में, हत्या के लिए आम तौर पर ज़्यादा सज़ा दी जाती है क्योंकि इसमें किसी की जान लेना शामिल होता है, जिसे एक अपरिवर्तनीय कृत्य माना जाता है। हालाँकि, ऐसे अपवाद भी हैं जहाँ कुछ अधिकार क्षेत्र बलात्कार के विशेष रूप से गंभीर मामलों के लिए मृत्युदंड या आजीवन कारावास लगाते हैं, खासकर जब इसे हत्या जैसे अन्य अपराधों के साथ जोड़ा जाता है। हालाँकि, ऐसे मामले दुर्लभ हैं, और अधिकांश कानूनी प्रणालियाँ दोनों अपराधों के बीच अंतर करती हैं।
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