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बढ़ाएँ दिमागी तार्किक शक्ति

बढ़ाएँ दिमागी तार्किक शक्ति

नेह अर्जुन इंदवार

आधुनिक समाज, अर्थव्यवस्था, राजनीति व्यवस्था या प्रशासनिक व्यवस्था या कहें पूरी दुनिया बहुत दुरूह और क्लिष्ठ व्यवस्था है। तमाम रोजमर्रा के व्यावहारिक क्षेत्र की न्यूनतम कार्यप्रणाली को समझने वाला व्यक्ति ही जीवन में आगे बढ़ता है। जो रोजमर्रे से संबंधित फिलॉसफी और इसकी सुक्ष्म कार्यप्रणाली को समझ नहीं पाता है, वह हर जगह मार खाता है।

 भारत में अन्न उपजाने वाला किसान अनाज मंडी और बाजार के कार्यप्रणाली के बारे कुछ नहीं जानता है। यही कारण है कि उन्हें उनके ऊपज का बाजार मूल्य कभी नहीं मिल पाता है। वहीं उनके अथक मेहनत से उपजाया हुआ फसल को बाजार की कार्यप्रणाली और दाँवपेंच से वाकिफ चालाक व्यापारी बाजार में बेच कर बहुत सारा मुनाफा कमा लेता है। यही हाल मेहनत करने वाले मजदूर और अन्य वर्ग का है, जो शारीरिक या मानसिक मेहनत तो जम कर करते हैं, लेकिन उनके मेहनत का असली मुनाफा उनकी मेहनत को खरीद कर पुनः उन्हें दुरूह बाजार में ऊंचे दाम में बेचने वाला व्यापारी प्राप्त करता है।

 एक मजदूर से अधिक आय-मुनाफा मजदूरों के अधिकार की रक्षा करने के नाम पर उनके नेता और दलाल करते हैं। क्योंकि वे बारगेन, सौदेबाजी करने में दक्ष होते हैं और सौदेबाजी के कार्यप्रणाली को जड़ से जानते हैं। वे अपने दक्ष दिमाग को चालाकी में लगा कर मालिकों से सौदेबाजी कर लेते हैं। कार्यप्रणाली को नहीं समझने के कारण ही मजदूर बेईमान, दलाल नेताओं की छत्रछाया में हमेशा घाटा में रहते हैं।

 प्रशासनिक, राजनैतिक, आर्थिक, बाजार की दुनिया की दुरूहता और क्लिष्ठता को समझ नहीं सकने के कारण आम जनता को ठगने में सभी नेता और बेईमान प्रशासनिक अधिकार सफल रहते हैं। कहीं पुल, रास्ता, बिल्डिंग अर्थात् सरकारी पैसे से विकास के कार्य होते हैं और जनता उसे दूर से मुटुर-मुटुर देखती है तो नेता और अफसर समझ जाते हैं कि इसमें कमाई का अच्छा खासा अवसर है।

 ऐसा ही खरीद-बिक्री के बाजार में भोलेभाले ग्राहक के साथ भी होता है। जिन्हें बाजार की कार्यप्रणाली, रेट निश्चित करने की प्रणाली, मांग और आपूर्ति, क्वालिटी और सीजन से जुड़ी बातें का प्राईमरी ज्ञान नहीं होता है, वह बाजार में ठगा जाता है।

 समाज, परिवार, फिलॉसफी-धर्म के बाजार में समाज, परिवार-धर्म की उत्पत्ति, उनका विकास, उनके किस्से कहानियाँ, उनके लिखित किताबों के पीछे की पृष्टभूमि, किताबों में छिपी दर्शन के पीछे की भावना, उनके सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक और मानसिक प्रभाव के बारे किंचित भी जानकारी नहीं रखने वाले का उसी तरह मानसिक, शारीरिक, सामाजिक और आर्थिक शोषण होता है, जैसे एक किसान, मजदूर या बाजार के ग्राहक का होता है। ठगी और शोषण के कितने प्रकार होते हैं, यह बताना कभी भी संभव नहीं होता है। इसकी प्रकृति, रूप-रंग बदलते रहते हैं।

 दुरूह और क्लिष्ठ व्यवस्था में यदि आम जनता के पास तार्किक दिमाग नहीं होगा तो वह हमेशा ठगी का शिकार होगा। अनपढ़ समाज में दुनिया के बाजारू फिलॉसफी के बारे किंचित भी स्तरीय, सार्थक और संबंधित ज्ञान नहीं होता है। इसीलिए पूरी दुनिया में उन्हें ठगी, पक्षपात, अन्याय, जुल्मो-सितम के शिकार होने से कोई बचा नहीं सकता। न कानून न समाज। क्योंकि इनकी पहुँच लोगों के दिमाग तक नहीं होता है।

खेत, खलिहान, खनिज संपदा, जल, जंगल, पहाड़, नदी, भाषा, संस्कृति, धर्म, परंपरा, रीति-रिवाज, आय, मेहनत, इज्जत, मान-सम्मान की अबाध लूट तार्किक दिमाग नहीं होने के कारण ही होता है। यदि किसी क्षेत्र में यह लूट अबाध गति से चल रहा है तो समझ जाईए कि उन क्षेत्रों के दिमाग तार्किकता के एक निश्चित स्तर तक पहुँच नहीं पाया है।

 “तार्किक दिमाग” तर्क करने के बाद ही किसी भी बात या स्थिति या घटनाक्रम या फिलॉसफी को स्वीकार करता है। जो दूसरे के दिमाग के भरोसे देखा-देखी मानसिकता में रहते हैं और बुदजिली जिंदगी जीते हैं, उनके साथ किसी की भी चालाकी, ठगी प्रणाली काम कर जाती है। दिमागी तार्किकता के प्रभाव और शक्ति से ही व्यक्ति या समाज अन्याय, ठगी, पक्षपात, लूट आदि से बच सकता है।

 इसलिए दिमाग को तार्किक बनाना हर आदमी का मुख्य लक्ष्य होना चाहिए। हर परिवार को अपने बच्चों में तार्किकता के बीज बोना चाहिए। बच्चों को अंधविश्वासी होने से बचाने के प्रयास जरूर करना चाहिए।

 तार्किकता बिना उचित स्तरीय, शिक्षा और स्वतंत्र सोच के नहीं आता है। स्वतंत्र सोच हिम्मत की भी मांग करता है। जिनका दिमाग बिना तार्किकता के ही बाहरी बातों को दिमाग में बसा लेता है, उनकी तर्क शक्ति या जानकारी को दिमाग में प्रोसेस करने की शक्ति भी बेकार हो जाती है।

 किसी भी क्षेत्र के दुनियावी बातों को ठोक बजा कर ही दिमाग में जगह देने वालों की तार्किक शक्ति बढ़ते जाती है और ऐसे Trained या प्रशिक्षित दिमाग असली और नकली, सही और गलत, स्तरीय या गैर स्तरीय बातों को पलक झपकते मूल्यांकन कर लेता है।

 तार्किकता को बढ़ाने के लिए दिमाग को सदैव अध्ययनशील बनाएँ रखें और हर प्रकार के किताब, पत्र-पत्रिकाएँ, जानकारी, आईडिया, भाषा की क्लिष्ठता, अंदाज, गहराई, फिलॉसफी, चिंतनधारा आदि को पढ़ने की आदत डालें। आपकी अध्ययनशीलता से तर्क शक्ति पैदल चल कर आपके दिमाग में आ ही जाएगी और आपको एक विचारशील, चिंतनशील और समझदार व्यक्ति बना कर ही दम लेगी। नेह।

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