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भूखे बगानियारों की मौत पर क्यों है इतना सन्नाटा?

भूखे बगानियारों की मौत पर क्यों है इतना सन्नाटा?

बागान मजदूरों की मौत पर इतना सन्नाटा क्यों पसरा है?
हर मृत्यु समाज और सभ्यता के लिए दुखद होती है। जब किसी की मौत भूख से होती है, तो यह व्यवस्था की असफलता का स्पष्ट संकेत है।

हाल ही में, मालबाजार सबडिविजन क्षेत्र के योगेशचंद्र चाय बागान में भूख से पाँच बगानियारों की मौत हुई। पर यह दुखद घटना, कोलकाता के आरजी कर अस्पताल में बलात्कार और हत्या के विरोध में उठी आवाज़ों के बीच कहीं खो गई। न तो स्थानीय ट्रेड यूनियनों और नेताओं ने इसे उठाया, न ही मीडिया ने इसे पर्याप्त कवरेज दिया।

जबकि यह सरकार और व्यवस्था की साफ-साफ विफलता है कि एक संगठित राज्य में लोग भूख से मर रहे हैं, फिर भी किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा रहा है।

यह स्थिति न केवल दुखद है, बल्कि इससे सरकार और समाज में जिम्मेदारी और नैतिकता की भारी कमी का भी पता चलता है। भूख से हुई मौतों पर पसरा हुआ यह सन्नाटा आखिर किस प्रकार की सामाजिक और राजनीतिक जागरूकता का संकेत देता है?

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जीवन के अधिकार और बुनियादी मानवाधिकारों को सुनिश्चित करने की राज्य की सर्वोच्च जिम्मेदारी है। भूख से होने वाली मौतें इस अधिकार का सीधा उल्लंघन मानी जाती हैं। जब लोग भोजन से वंचित होकर मरते हैं, तो यह न केवल राष्ट्रीय संविधानों, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय समझौतों जैसे कि मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा का भी उल्लंघन है।

सरकारें अपने नागरिकों के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बाध्य हैं। भूख से होने वाली मौतें गरीबी उन्मूलन और कल्याणकारी नीतियों की विफलता का प्रतीक हैं। यह राज्य की जिम्मेदारी है कि वह अपने कमजोर और असहाय नागरिकों के लिए भोजन की व्यवस्था करे।
भूख से होने वाली मौतें समाज में असमानता, न्याय और नैतिकता के मुद्दों को उजागर करती हैं। अगर लोग भोजन की कमी के कारण मर रहे हैं, तो यह न केवल राज्य की नैतिकता पर सवाल उठाता है, बल्कि उसके शासन के अधिकार पर भी प्रश्न खड़ा करता है।

विस्तृत भूख समाज में अस्थिरता ला सकती है, जिससे अशांति, अपराध और आर्थिक गिरावट बढ़ सकती है। भूख से मौतों को रोकना न केवल मानवीय मुद्दा है, बल्कि सामाजिक स्थिरता और आर्थिक विकास के लिए भी आवश्यक है। यह सरकार और न्यायपालिका के लिए चुनौती है कि वे ऐसी घटनाओं को गंभीरता से लें और उन्हें रोकने के लिए ठोस कदम उठाएं।


भूख से मौतें केवल एक सामाजिक और आर्थिक समस्या नहीं हैं, बल्कि व्यवस्था की गहरी असफलताओं का प्रतीक हैं। इसका समाधान समाज और सरकार दोनों की सामूहिक जिम्मेदारी है।

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