मनोविज्ञान से व्यक्तित्व विकास
नेह इंदवार
आमतौर से यह माना जाता है कि मनोविज्ञान विशेषज्ञों का विषय है। हालांकि पेशेवर रूप से इसे सार्वजनिक प्रैक्टिस करने के लिए क्वालिफाईड विशेषज्ञों को ही अनुमति दी जाती है। लेकिन आम लोग भी मनोविज्ञान का सामान्य अध्ययन करके इसे अपने जीवन में रोज़मर्रा के कार्यों में प्रयोग कर सकते हैं। यह वास्तविक है कि मनोविज्ञान विषय के अध्ययन अध्यापन के युगों पहले से ही दैनिक व्यवहार में इसे प्रयोग में लाया जाता रहा है। मनोविज्ञान की जानकारी जीवन को खुश-नुमा बनाने, समस्याओं को हल करने, अपनी सोच और व्यवहार में बदलाव लाने, कठिन परिस्थितियों को संभालने, अपरिचित लोगों से स्थायी संबंध बनाने के पूर्व उनकी मानसिकता, सोच और जीवन दृष्टि को समझने आदि हजारों कार्य के लिए बहुत काम के सिद्ध होते हैं। मनोविज्ञान की जानकारी व्यक्ति के नज़रिए, सोच, कार्य, लक्ष्य, आदत आदि को बहुत प्रभावित करता है।
यह गलतियाँ करने से व्यक्ति को बचाता है और लोगों को सुधारने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह सोच, व्यवहार के स्तर पर हजारों तरह के कार्य अपरोक्ष या परोक्ष करता है। मनोविज्ञान की सामान्य जानकारी मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के काम में भी बखूबी काम में आता है। जीवन के लिए तय उच्च लक्ष्यों की प्राप्ति में मनोविज्ञान की जानकारी बहुत सहायक होते हैं।
मनोविज्ञान में दक्ष व्यक्ति इसका प्रयोग करते हुए अपनी बातों में परिस्थितियों के अनुसार प्रभाव उत्पन्न करने में सक्षम होते हैं। उनकी बातों में गुंथे हुए शब्दों और वाक्यों में चमत्कार होते हैं। वे किसी व्यक्ति के दिमाग के अंदरूनी हिस्से में पहुँच कर सोच और आदत को बदलने की शक्ति से युक्त भाषा और वाक्य बोलने में दक्ष होते हैं और व्यक्ति को लक्षित करके खास उद्देश्यों के लिए बोले गए शब्द अपने काम कर जाते हैं। यह व्यक्ति के खोए हुए आत्मविश्वास को लौटा सकता है, उनमें नयी जोश और ऊर्जा का संचार कर सकते हैं तथा व्यक्ति के सहज सोच और चिंतन धारा और स्वास्थ्य को बदल सकते हैं। सटीक तरीके से कहे गए प्रशंसा के बोल अक्सर जादुई असर करते हैं।
गुरू शिष्य परंपरा में गुरू के द्वारा सैकड़ों शिष्यों में से चुने गए खास शिष्य को विशिष्ट मुद्रा और अवसर में यह कहना कि “आप ईश्वर के चुने हुए खास साहसी और आध्यात्मिक व्यक्ति हैं”, नये शिष्य को ह्रदय के अंदर तक प्रभावित करता है। ये शब्द शिष्य को खसम-खास होने का एहसास कराता है। उसे खास लक्षित विचार-खांचे में ढालने के लिए काफी होता है। किसी नये रंगरूट को सेना के बड़े अधिकारी जब यह कहता है कि “रंगरूट तुम्हें हमने नहीं चुना, बल्कि चार हजारों लोगों के बीच से तुम्हारी योग्यता ने ही तुम्हें चुना है।“ “तुम्हें ईश्वर ने सेना में अपनी मातृभूमि के लिए बलिदान देने के लिए चुना है, तुम्हारा जन्म ही देश की सेवा करने के लिए हुआ है।“ इतना सुनने के बाद नये रंग-रूट की आत्मा सेना के प्रति नतमस्तक और समर्पित हो जाता है। व्यक्ति के दिल-दिमाग को लक्ष्य के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित कराने में मनोविज्ञान युगों से सफल रहा है।
“तुम्हे हजारों में चुना गया है” या “तुम खुद ईश्वर के द्वारा चुने गए हो” आदि वाक्य विशेष प्लान और उद्देश्य के तहत बोला जाता है। नये रंगरूट यह सुन कर कुप्पा हो जाता है कि “उन्हें ही यहाँ प्रवेश करने की इजाज़त मिली है,” “दूसरे दो हजार अयोग्य लोगों को नहीं।“ यह वाक्य किसी को विशेष व्यक्ति या विशेष होने के मान सम्मान का एहसास कराने के लिए काफी होता है। किसी ग्रुप के सामान्य सदस्यों में से किसी विशेष सदस्य को बड़ी ज़िम्मेदारी देने या पदोन्नति देने के लिए भी ऐसे ही वाक्यों से व्यक्ति को प्रेरित किया जाता है। ऐसे शब्दों में बड़ी जादुई शक्ति होती हैं। यह व्यक्ति के दिमाग में जादू की फूलझड़ी बन कर आतीशबाजी करती हैं। ऐसे शब्द किसी नये बंदे के दिमाग से अवांछित चिंतन या सोच-शंका को बाहर निकालने और संगठन या संस्थान के प्रति नये समर्पित चिंतन या सोच को सिंचित करने का एक नयाब तरीका है। यह सब मनोविज्ञान के तहत व्यक्ति में परिवर्तन करने के लिए प्रयोग किया जाता है। किसी की योग्यता, क्षमता, विशेषता को नपे तुले शब्दों में विशेष परिस्थिति और अंदाज में व्यक्त करने से व्यक्ति की कार्य-क्षमता, योग्यता का न सिर्फ सम्मान होता है, बल्कि इससे उसके वैयक्तिक गुणों को मान्यता भी मिलता है। सम्मान और मान्यता व्यक्ति के गुणों को बढ़ाने में अधिकतर मामले में सफल होते हैं। गुणों को पुरस्कृत करने का सबसे बड़ा लक्ष्य यही होता है। किसी संगठन के युवाओं को प्रशिक्षित करने के क्रम में यह एक अनिवार्य तत्व के रूप में कार्य करता है।
अक्सर नयी कमसीन दुल्हन को घर की अंत-रंग और विश्वासी सदस्या बनाने के लिए भी ऐसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है। जब घर के अंदरूनी और महत्वपूर्ण प्रबंधन ढाँचे में नयी दुल्हन को शामिल करना होता है तो, घर के बड़े बुजुर्ग द्वारा उन्हें घर की चाबी के गुच्छे थमाया जाता है और उन्हें घर की मालकिन का पद दिया जाता है, ताकि वह समर्पित, उत्तरदायी, समझदार, विश्वासी बने और अपने को घर का अभिन्न हिस्सा समझे और तदनुसार उत्तरदायित्व का निर्वहन करे।
चाबी के गुच्छे किसी अल्हड़ कम-सीन युवती को घर के अभिभावक होने का एहसास कराता है और उनके असावधानी भरे बिनव्याही व्यवहार से उन्हें भावनात्मक रूप से अलग कर देता है। ज़िम्मेदारी की ऐसी भावना को द्विगुण करने के लिए दामाद को ससुराल में घनिष्ठ सदस्य बनाने के लिए भी इसी तरीके का इस्तेमाल किया जाता है। दामाद का ससुराल के साथ मानसिक और भावनात्मक संबंध बना कर लड़की के घर वाले बेटी की दाम्पात्य भविष्य को अधिक सुदृढ़ करते हैं। मनोविज्ञान का यह पहलू युगों से समाज में प्रयोग में लाया जाता रहा है।
दुनिया के अनेक समाजों, संगठनों या सिक्रेट सोसायटियों में बाहरी सदस्यों को अंदरूनी सदस्य बनाने के लिए खास तरीके से पेय दिया जाता है या खास तरीके से खाना खिलाया जाता है या फिर उन्हें घर-संगठन के महत्वपूर्ण क़ागज़ात या संदूक या आभूषण या चाबी या पद थमाया जाता है या फिर घर के कनिष्ठों की देखभाल और कल्याण की ज़िम्मेदारी उन्हें सौंपी जाती है। नई जिम्मेदारियाँ देते हुए मनोविज्ञान से रंजित वाक्यों का व्यवहार किया जाता है। ये सारे व्यवहार मनोविज्ञान के सिद्ध चाशनी से सने हुए होते हैं।
धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक या प्रशासनिक रूप से स्वीकृत ऐसे सैकड़ों संस्कार या परंपराएँ होती हैं, जो सदियों से कामयाब और उपयोगी सिद्ध हो चुकी रहती हैं। धार्मिक रूप से स्वीकृत परंपरा और विश्वास मनोवैज्ञानिक रूप से बहुत प्रभावी होते हैं। बचपन में डाली गई धार्मिक आदतें व्यक्ति के जीवन से चाह कर भी सहज रूप से ज़ुदा नहीं होते हैं। जिन्हें धार्मिक रूप से अहले सुबह ब्रह्मा मुहुर्त में उठकर स्नान करने की आदत लगी होती है, वह आदत कालांतर में दिमाग के अंदरूनी भाग का अभिन्न हिस्सा बन जाती है और व्यक्ति किसी कारण-वश कभी अहले सुबह नहीं जाग कर स्नान नहीं कर पाता है, तो उनके दिमाग में इसके लिए पश्चाताप की भावना तक घर कर जाती है।
यदि कोई बचपन से मंगलवार को किसी मंदिर विशेष में जाता है और किसी मंगलवार को वह उस मंदिर-विशेष में नहीं जा पाता है और उन्हें उन्ही देवता के किसी दूसरे मंदिर में जाना पड़ता है, तो भी उनके दिमाग में गहरे रूप से अंकित अपनी आदत के पूर्ण नहीं होने के लिए उनकी भावनाएँ कचोटती रहती है। पश्चाताप और कचोटने की भावना दिमाग के स्वास्थ्य कार्यप्रणाली में बस कर दिमागी को नकारात्मक रूप से प्रभावित करने लगता है। पाप-पुण्य के विचार भी इसी तरह दिमाग को प्रभावित करता है।
आमतौर से आदत को लोग बहुत सामान्य ढंग से लेते हैं। लेकिन आदत जीवन की डोर को किसी खास लहज़े में बाँध कर उन्हें उन लहज़ों का ग़ुलाम बना देता है, इन बातों से वे अनजान होते हैं। कई लोग आदत की वजह से सभी से सभी व्यक्ति के सामने एक ही तरह से पेश आते हैं और सभी परिस्थितियों में भी एक ही तरीके से बात और व्यवहार करते हैं। जबकि हर परिस्थिति और स्थान किसी खास तरह के बातचीत और व्यवहार की प्रत्याशा करता है। घर और कार्यालय के बातचीत, बोलने के ढंग, भाषा, व्यवहार, उठने, बैठने, प्रत्युतर देने, कार्य करने के ढंग एक तरह से कभी नहीं हो सकते हैं। मनोविज्ञान का ज्ञान इन मामलों में बहुत मददगार साबित होता है।
आदत हर आदमी को किसी खास तरीके से एक अलग व्यक्ति बनाता है। हर व्यक्ति खास होता है। हर व्यक्ति की सोच, आदत और व्यवहार किसी खास सांचे में ढली हुई होती है। कोई आदत व्यक्ति को फायदा पहुँचाता है, वहीं कोई आदत आदमी के लिए मुश्किलें भी लाता है। जल्दी उठना, जल्दी सोना, देर से जागना देर से सोना हर बार फ़ायदेमंद नहीं होते हैं।
हर व्यक्ति, संस्थान या संगठन जीवन में आगे बढ़ना चाहता है। प्रगति की आकांक्षा जीवन सोच का मूल आधार है। प्रगति, विकास और सुख की वृद्धि ही सारे संसार के कार्य-व्यवहार का लक्ष्य होता है। इन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए कुछ खास प्रकार के दक्षता, क्षमता, गुणों के साथ इन्हें प्राप्त करने लायक कार्यकारी योजना की जरूरत होती है। वांछित क्षमताओं, लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए मनोवैज्ञानिक ज्ञान के सहारे खास तरह की आदत विकसित की जा सकती है, या प्लांट की जा सकती है, जो लम्बे काल में कार्य सिद्धि के लिए फ़ायदेमंद होते हैं। मनोविज्ञान ऐसी आदतों को त्यागने में सहायक होते हैं जो लाभदायक नहीं होते हैं। यदि मन के विज्ञान से वह वाक़िफ़ हो जाए तो तन मन और जीवन-धन सभी का सभ्यक, सुचारु और कारगर प्रबंधन किया जा सकता है। नेह।
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