दार्जिलिंग के 87 चाय बागानों में से 10 हैं बंद
दार्जिलिंग के सांसद राजू बिष्ट ने राज्य और केन्द्र सरकार को चिट्ठी लिख कर सूचित किया है कि दार्जिलिंग के 87 चाय बागानों में से 10 बंद हैं और चाय बागानियारों की आर्थिक स्थिति बिगड़ती जा रही है। पश्चिम बंगाल के श्रम विभाग ने पहाड़ों के चाय बागान प्रबंधनों को 16% बोनस देने का निर्देश जारी किया था। लेकिन कई बागानों में इससे बहुत कम बोनस दिए गए।
लंग्व्यू चाय बागान के श्रमिक कह रहे हैं कि बागान प्रबंधन ने ट्रेड यूनियनों से परामर्श किए बिना ही 10% बोनस बैंक खातों में ट्रांसफर कर दिया है। फिलहाल दार्जिलिंग के पहाड़ों में स्थित कई चाय बागानों में अभी भी 20% बोनस की मांग पर आंदोलन चल रहे हैं। श्रम विभाग निष्क्रिय है और चाय उद्योग के श्रमिक समस्याओं का फिलहाल कोई पुख्ता समाधान नज़र नहीं आता है। 250 रूपये के दैनिक हजीरा या मजदूरी पर काम करने वाले श्रमिकों का न्यूनतम वेतन पर भी राज्य सरकार निष्क्रिय दिखाई पड़ रही है, जबकि कलकाता उच्च न्यायालय ने पिछले साल अगस्त महीने में ही सरकार को छह महीने के भीतर न्यूनतम वेतन तय करने का निर्देश दिया था। इसी बीच श्रमिक आंदोलन और प्रबंधन की सुरक्षा का बहाना बनाते हुए कई चाय मालिक अपने अधीन के चाय बागानों में काम बंद कर दिए हैं या प्रबंधन बागान छोड़ कर चले गए हैं। कम बोनस हमेशा ही चाय बागान में विवाद का विषय बनता रहा है। पिछले साल भी डुवार्स के कालचीनी, राईमटंग जैसे कई चाय बागान बोनस मुद्दे पर बंद हो गए थे, जो अब भी बंद है। इन्हें खुलवाने के फिलहाल किसी सरकारी पहल का कोई समाचार नहीं है। जबकि एक दशक से अधिक समय से बंद रायपुर चाय बागान जैसे चाय बागान के श्रमिक बागान खुलने के किसी आश्वासन पर भरोसा करने से ही इंकार करते हैं।
डुवार्स और तराई क्षेत्र में कमोबेश बोनस मुद्दे को लेकर मजदूरों में असंतोष होते हुए भी कहीं किसी बागान के बंद होने की सूचना नहीं है। यद्यपि कालचीनी सहित कई चाय बागान पिछले वर्ष से ही बंद है। इन बागानों में पीएफ और ग्रेज्युएटी के लिए श्रमिक भटकते रहे हैं, क्योंकि बागान मालिक पीएफ के पैसे काट कर भी उसे पीएफ ऑफिस में जमा नहीं किए और राज्य सरकार ने ऐसे चाय बागान मालिकों पर किसी प्रकार की कोई दंडात्मक कार्रवाई भी नहीं की।
उधर दार्जिलिंग में 20% बोनस की मांग पर पहाड़ के चाय बागानों में अभी भी आंदोलन चल रहे हैं। इस बीच दार्जिलिंग के सांसद राजू बिष्ट ने चिट्ठी लिख कर राज्य सरकार और केन्द्रीय सरकार को पहाड़ के 10 बंद चाय बागानों की ओर ध्यान आकृष्ट किया है। पहाड़ के कई चाय बागान पिछले कई सालों से बंद हैं, वहीं कई हाल फिलहाल बंद हो गए हैं। उन्होंने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और केन्द्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल को पत्र लिख कर सूचित किया है कि दार्जिलिंग पहाड़ों में स्थित 87 चाय बागानों में से 10 चाय बागान बंद है। इसके कारण यहाँ के चाय बगानियारों की आर्थिक स्थिति खराब हो रही है। उन्होंने सरकार मुख्य मंत्री से हस्तक्षेप करके उन्हें खोलने और संचालित करने के लिए अपने प्रभाव का इस्तेमाल करने का अनुरोध किया है। सांसद ने सरकार को सूचित किया है कि बागानों के बंद हो जाने पर मजदूरों को पेंशन, ग्रेज्युएटी, पीएफ सहित अन्य वित्तीय लाभ और सहायता खोनी पड़ी है। उन्होंने लिखा है कि दुर्भाग्य से पश्चिम बंगाल का श्रम विभाग चाय उद्योग को परेशान करने वाले इन महत्वपूर्ण मुद्दों को हल करने में विफल रहा है।
सांसद ने लिखा है कि नये श्रम कनून के तहत उचित वेतन, बोनस और अन्य सुविधाओं का अधिकार पश्चिम बंगाल में अभी तक लागू नहीं हुआ है। इसके अतिरिक्त कई चाय बागानों ने पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा 16% बोनस देने के निर्देश का अनुपालन किए बिना बागान बंद करके प्रबंधन के कर्मी बागानों से चले गए हैं। इन बागानों के श्रमिक 20% बोनस की मांग को लेकर क्रमिक भूख हड़ताल और आंदोलन कर रहे हैं। सांसद ने राज्य सरकार और मुख्यमंत्री से अनुरोध किया है कि वे समस्याओं को सुलझाने के लिए अपने प्रभाव का इस्तेमाल करें।
इसके साथ ही दार्जिलिंग के सांसद ने केन्द्रीय मंत्री को चाय बागानों के बारे सूचित करते हुए लिखा कि वे इन बंद चाय बागानों को भारत सरकार टी बोर्ड के अन्तर्गत लेने की संभावना पर विचार करें या केन्द्रीय सहकारिता मंत्रालय की सहायता और समर्थन से श्रमिकों द्वारा संचालित सहकारी समतियों के रूप में चलाने की संभावना पर विचार करें। दार्जिलिंग पहाड़ के पानीघाटा 2008 से से ही बंद है। जबकि धोतरिया चाय बागान 2015 से, रूंगमूक सीडर, मुंडा कोठी, अंबोटिया, चोंगथोंग और नागरी 2021 से बंद हैं। पंदाम, पेशोक और सिंगताम 2024 से बंद हैं। इन चाय बागानों को खोलने और संचालित करवाने में राज्य का श्रम विभाग विफल रहा है।
इसी वर्ष फरवरी महीने में खबर आई थी कि राज्य सरकार ‘अचानक बंद हो जाने वाले चाय बागानों के संचालन के लिए एक मानक संचालन प्रक्रिया (standard operating procedure) बनाने के लिए एक ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स (GOM-मंत्रियों का समूह) का गठन किया है’, जिसमें राज्य के कानून और श्रम मंत्री मोलॉय घटक जीओएम के अध्यक्ष हैं और कृषि मंत्री सोभनदेव चट्टोपाध्याय, राज्य के खाद्य और आपूर्ति मंत्री रथिन घोष, राज्य के उद्योग और वाणिज्य मंत्री शशि पांजा और राज्य के पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री बुलुचिक बराइक शामिल हैं। इसमें दो अन्य सदस्य भारतीय गोरखा प्रजातांत्रिक मोर्चा के अध्यक्ष अनित थापा और सांसद प्रकाश चिक बड़ाईक को भी शामिल किया गया है। लेकिन लगता है अब तक यह मानक संचालन प्रक्रिया फाईनल नहीं हो पाया है।
उधर 20% बोनस की मांग पर क्रमिक भूख हड़ताल कर रहे लंग्व्यू चाय बागान के श्रमिकों ने पंखाबारी, अंबोटिया, लंग्व्यू समष्टि के सभासद कल्पना प्रधान की नेतृत्व में दार्जिलिंग जिला के डीएम को एक ज्ञापन-पत्र सौंपा है और 20% बोनस की अपनी मांग को पूरा करने के लिए सरकार से हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया। पत्र में कहा गया है कि बागान के प्रबंधन किसी भी ट्रेड यूनियन से परामर्श किए बिना ही 10% बोनस की राशि बैंक में ट्रांसफर किया गया है, जबकि पश्चिम बंगाल सरकार के श्रम विभाग ने पहाड़ के चाय बागानों को भी 16% बोनस देने का निर्देश दिया था। मजदूरों का कहना है कि प्रबंधन के इस रवैये से स्थिति बिगड़ सकती है और श्रमिक अधिक उग्र आंदोलन करने के लिए मजबूर हो सकते हैं।
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