सिर्फ 16% बोनस से आक्रोषित चाय मजदूरों का उग्र होता आंदोलन
सिर्फ 16% बोनस समझौते से पश्चिम बंगाल के चाय बागानों में उपजे मजदूर असंतोष आंदोलन दिनों दिन नये क्षेत्र में फैल रहा है। रोज नये चाय बागान में आंदोलित होकर गेट मिटिंग करने या बागान कार्यालय के सामने अपना असंतोष व्यक्त करने की खबरें आ रही हैं। कई जगह बोनस समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले नेताओं के पुतले फूँके जा रहे हैं। नेताओं के नाम लेकर उनका विरोध किया जा रहा है। बोनस और अन्य मामलों में वे अपने साथ हो रहे अन्याय का उग्र विरोध कर रहे हैं।
मजदूरों के दुख दर्द से परिचित पर्यवेक्षकों का कहना है कि मजदूरों में वर्षों से पनप रहे असंतोष एक दिन उग्र रूप से सामने आएगा, उन्हें पहले से ही यह आशंका थी। किसी दिन गहरे रूप से शोषित मजदूर, जब राजनैतिक पार्टियों से जुड़ी जादुई चक्र से बाहर आएँगे तो वे नेताओं के कार्यकलापों पर उग्र असंतोष जाहिर करेंगे। कम बोनस से उपजे असंतोष आंदोलन के आग में घी तब पड़ गया, जब बगानियारों को खबर मिली कि असम के चाय बागानों में एक्स ग्रेसिया को मिला कर 20% बोनस दिया जा रहा है। आज हर बागान में बगानियार आंदोलित है।
यदि बगानियारों का वर्तमान बोनस आंदोलन सफल हो जाता है तो उन्हें इसके फलस्वरूप 8.33% से 16% के बीच 4000 रूपये से लेकर 11-12 हजार रूपये अधिक बोनस मिल सकते हैं। लेकिन अब तक का इतिहास को देख कर नहीं लगता है कि मजदूर नेतागण उन्हें इससे अधिक बोनस दिला सकेंगे।
चाय बागानों में फिलहाल राजनैतिक पार्टी और ट्रेड यूनियन के बंधनों से मुक्त होकर बगानियार आंदोलन कर रहे हैं, जो उनके परिपक्व वैचारिकी स्थिति पर पहुँचने का संकेत है। यदि वे पार्टी और ट्रेड यूनियन के विभाजनकारी बंधनों से आजाद होकर एकताबद्ध स्वर से अपने अन्य समस्याओं और मांगों को लेकर मुखर होंगे, तो इसका सीधा फायदा उन्हें मिलेगा। यदि नये उभर रहे मजदूर नेतागण मजदूर एकता को बोनस से आगे न्यूनतम वेतन की मांग तक लेकर जाएँगे तो उन्हें न्यूनतम वेतन पर जबरदस्त सफलता हासिल हो सकता है। क्योंकि इस मांग को नेताओं ने पार्टी के विभाजनकारी बंधनों के भूलभुलाईयों में बाँध कर रख दिए हैं। मजदूर ट्रेड यूनियन और राजनैतिक पार्टियों के जादुई बातों से आपस में पूरी तरह बिखरे हुए हैं और वे नेताओं पर अंकुश रखने में सफल नहीं हैं। राज्य के स्थानीय सत्ताधारी नेतागण अपनी सरकार से इस विषय पर दो टूक बात करने में नाकाम हैं। ऊधर विपक्ष के नेतागण भी अपनी मुँह की सिलाई करके बैठे हुए हैं। ऐसा लगता है कि नेतागण पूँजीपतियों के प्रभाव में आकर मजदूरों के न्यूनतम वेतन मुद्दे को नज़रांदाज करने के खेल में परोक्ष रूप से शामिल हो गए हैं।
फिलहाल चाय मजदूर न्यूनतम वेतन अधिनियम 1948 के अधीन कानूनी मजदूरी से वंचित है और वे इसके लिए 2012 से ही आंदोलित हैं। लेकिन अब तक सरकार के रवैये से ऐसा नहीं लगता है कि सरकार उन्हें न्यूनतम वेतन देना चाहती है। 2015 में इसके लिए गठित चाय मजदूरों के लिए न्यूनतम वेतन सलाहकार समिति 9 वर्षों के बाद भी इसके लिए कोई ठोस कार्रवाई नहीं कर पायी और मजदूर अभी भी इससे वंचित हैं। अगस्त 2023 में कलकाता हाई कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए सरकार को निर्देश दिया कि वह छह महीने के भीतर चाय बागान मजदूरों को कानून द्वारा मान्यता प्राप्त न्यूनतम वेतन दें। लेकिन अड़ियल और मजदूर विरोधी मानसिकता से संचालित सरकार ने इस पर कोई कदम नहीं उठाया और उसकी मंशा न्यूनतम वेतन देने की नहीं लगती है। सरकार ने हाल ही में कोर्ट में दाखिल हलफनामा में कहा कि वह न्यूनतम वेतन देने के लिए एक समिति का गठन किया है। उसने 28 अगस्त 2024 में इसके लिए फिर से एक नयी समिति बना दी। लगता नहीं कि सरकार द्वारा कोर्ट को 2015 में बनाई गई पुरानी समिति और उसकी 20 असफल बैठक और उसके नाकाम निर्णयों पर विस्तार से बताया हो। नये उभर रहे मजदूर नेतागण इस मामले पर सक्रिय होकर कोर्ट में अलग हलफ़नामा दाखिल करके अपने वंचना, आर्थिक शोषण और भेदभाव को बता सकते हैं।क्योंकि पुराने नेताओं की मंशा कभी भी कोर्ट में जाने और मजदूरों को न्याय दिलाने की नहीं रही है। वे चाहते तो कलकाता कोर्ट में चल रहे मामले पर दखल की मांग करके अपनी बात रख सकते थे।
बोनस के लिए मजदूरों में आई एकता को यदि नये मजदूर नेतागण कोर्ट के कार्रवाई में दखल देने तक लेकर जाएँ तो मजदूरों को बोनस से भी अधिक न्यूनतम वेतन पर सफलता मिलने की संभावना है। फिलहाल मजदूरों को 250 रूपये प्रति दिन मजदूरी दी जा रही है। यदि कानूनी प्रावधानों के तहत उन्हें न्यूनतम वेतन दिया जाए तो नकद के रूप में मिलने वाला अंतरवर्तीकालीन वेतन यानी वर्तमान में मिलने वाला 250 रूपये ( 2015 में हुए त्रिपक्षिक वेतन समझौता में मजदूर को मिलने वाले नकद राशि को कुल मजदूरी में से 43% माना गया था, तब 57% राशि को फ्रिंज बेनेफिट्स के लिए प्रबंधन को देने का निर्णय हुआ था) तथा प्रबंधन को मिलने वाले 57% को मिला कर, इसमें महंगाई दर, फिटमेंट बेनेफिट्स तथा राशन के रूपये को मिला देने पर यह न्यूनतम हजीरा 700 रूपये प्रति दिन बन सकता है। न्यूनतम वेतन अधिनियम में मजदूरों को नकद राशि और फ्रिंज बेनेफिट्स की राशि को मिलाकर ही एकमुश्त नकद मजदूरी दी जानी है। तब फ्रिंज बेनफिट्स खत्म हो जाएगा और बागान से फ्रिंज बेनेफिट्स नहीं मिलेगा। फिलहाल पंचायत के रास्ते मजदूरों को सरकारी सहायता मिल ही रहा है। यदि सरकार अपने शोषक मानसिकता और अड़ियल रवैया से बाहर आकर 9 वर्ष से अटकी हुई न्यूनतम वेतन पर तुरंत निर्णय लेती है तो हर मजदूर को 700X26=18200 (18 हजार 200) रूपये प्रति महीना वेतन मिल सकता है। खून पसीने की यह मासिक आमदनी (कमाई) बोनस के आसपास के ही रकम होगी। लेकिन यह हर महीना मिलेगा। मासिक रूप से होने वाले इस आय से मजदूरों की जिंदगी फिलहाल के भयानक गरीबी से बाहर निकल जाएगी। साल में इस रकम पर 20% बोनस करीबन 43 हजार रूपये होगा।
तमाम बागानों के नये लीडर जो मजदूर आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं, वे सरकार द्वारा जानबुझ कर लटकाए गए न्यूनतम वेतन पर मजदूरों को जागरूक करें और बोनस के आगे आंदोलन को बढ़ाते हुए न्यूनतम वेतन की मांग तक ले जाएँ तो बगानियारों को इसका बहुत फायदा मिलेगा। फिलहाल वे अपने खून पसीने की कमाई से सरकारी नीतियों के कारण कई हजार के वेतन से हर महीने वंचित हैं, उस पर आंदोलन की राह को आगे बढ़ाएँ। यही वह मुख्य बिंदु है, जिस पर आज की आंदोलन से सृजित और पार्टी लाईन को तोड़ कर सामने आए एकता और ताकत अपने हक को हासिल कर सकता है।
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