हर दान के पीछे कुछ उद्देश्य होते हैं।

NehNews Network

धन दान के अपने होते हैं उद्देश्य

Donation for Charity

धन दान के अपने होते हैं उद्देश्य

अक्सर जब आप ट्रेन में सफर करते हैं तो ट्रेन के डब्बे में कुछ भिखारी घुस कर  भीख मांगना शुरू कर देते हैं। कभी आप उन पर तरस खाकर पाँच दस रूपये दे देते हैं या आप खाने के कुछ सामान दे देते हैं। आपका यह छोटा सा भीख भले दान न कहलाता हो, लेकिन असल में आप कुछ राशि अपने पॉकेट से दान ही कर रहे होते हैं। वहीं आधुनिक खरबपति धनवान लोग अरबों में दान देते हैं और सुर्खियाँ बटोरते हैं। असल में दान कई तरीके के होते हैं और यह छोटे या बड़े कई उद्देश्यों को पूरा करता है। हर धन दान के पीछे कुछ उद्देश्य होते हैं। यूनिसेफ, टाटा ट्रस्ट, बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन, ओपन सोसायटी फाउंडेशन, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय आदि की स्थापना में परोपकारिता के दान ने मुख्य भूमिका निभाया था। दान के धन से दुनिया भर में लाखों संस्थाएँ अस्तित्व में आई है और कई आधुनिक नवाचार अविष्कार में दान की भूमिका अग्रणी रही है। 

यदि आप सह्दय हैं और आपके पास आवश्यकता से अधिक राशि उपलब्ध है तो आप उसे कभी किसी धार्मिक स्थल में या किसी एनजीओ या किसी सामाजिक संस्थाओं को दान देते हैं तो उक्त संस्थाओं के दानकर्ता सूची में आपका नाम दर्ज किया जाता है। कई बार धार्मिक स्थलों में, स्कूल कालेजों, सरायगाहों में सहायता या दान देने वालों के नाम लिखे जाते हैं। दान के माध्यम से कई आंदोलन खड़े किए गए हैं और कई मुश्किल के कार्यों को बहुत ही आसान तरीकों से निपटाया भी जाता है। दान धन का एक ऐसा रूप होता है जो किसी खास उद्देश्य के लिए दिया जाता है या लिया जाता है।  

दान जितना बड़ा होता है, उसकी महिमा उतनी ही बड़ी गायी जाती है। भिखारी को दिए गए दान पर तो कोई संवाद ही नहीं होता है। लेकिन जैसे-जैसे बड़ा दान किसी विशेष कारणों से दी जाती है तो दान देने वालों के नाम का उल्लेख किया जाता है। कई लोग मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर, गुरूद्वारा, अनाथालय आदि में दान देते हैं। वहीं राजनीति और वोट प्राप्ति के उद्देश्य के लिए नेताओं द्वारा दान दी जाती है, जिसका फोटो के साथ प्रचार-प्रसार किया जाता है। कई बार कई लोग धन कमाने के बाद अपने धनवान बनने की घोषणा करने के उद्देश्य से किसी संस्था या सार्वजनिक अवसर पर दान देते हैं या इसकी घोषणा करते हैं। सरकार अपने नागरिकों को कई बार मुफ्त धन राशि देती है. यह भी एक प्रकार का दान ही होता है।

AMAZON ONLINE 

Click here  to check the prices and get up to 80% OFF

कई बार कई व्यक्ति गुप्त दान भी देते हैं। इस तरह के दान में वे चुपचाप अपनी पहचान को गुप्त रखते हुए दान देते हैं। ऐसे दान छोटी राशि की भी होती है तो कईबार बड़ी राशि दान में दी जाती है। गुप्त दान के पीछे सचमुच परोपकारिता की भावना छिपी होती है या धार्मिक कारण या पाप से बचने की कवायद होती है या गलत ढंग से प्राप्त पैसे के साथ आए बुराई की आत्म को शांत करने के लिए धन दान में देते हैं। कारण जो भी हो यह तो दानकर्ता ही जानते हैं, लेकिन इसमें भी कुछ उद्देश्य जरूर गुंफित होता है। 

इसके आलावा भी कई दान निरोद्देश्य हो सकता है।  दान देने वाला व्यक्ति परोपकारिता की भावना से ओतप्रोत होता है। परोपकारी व्यक्ति कल्याणकारी परोपकारी संस्थाओं को भी दान देते हैं।  अज्ञात व्यक्तियों या परोपकारी संगठनों को दान देने की प्रथा की गहरी ऐतिहासिक जड़ें हैं, जो विभिन्न सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक संदर्भों के माध्यम से विकसित हुई हैं। परोपकार की यह परंपरा अक्सर परोपकारिता, सामाजिक जिम्मेदारी और सामुदायिक समर्थन के केंद्रीय विचारों से प्रेरित होती है। दान करने का कार्य अक्सर कई प्रमुख अवधारणाओं द्वारा समर्थित होता है। दान का समर्थन करने वाले केंद्रीय विचार दूसरों की भलाई के लिए निस्वार्थ चिंता कई व्यक्तियों को व्यक्तिगत लाभ की तलाश किए बिना दान करने के लिए प्रेरित करती है।

कई दानकर्ता समाज में सकारात्मक योगदान देने के लिए नैतिक दायित्व महसूस करते हैं, खासकर वे जो सामाजिक व्यवस्थाओं और संरचनाओं से लाभान्वित हुए हैं। दान का उद्देश्य अक्सर सामुदायिक संबंधों को मजबूत करना और इंसानियत को जिंदा रखना भी होता है। जैसे-जैसे समाज अधिक परस्पर जुड़ते जा रहे हैं, परोपकार की समझ स्थानीय समुदायों से आगे बढ़कर गरीबी उन्मूलन, शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल जैसी वैश्विक चिंताओं तक फैल गई है। धन के अंधाधूँध केन्द्रीयकरण प्रक्रिया के फलस्वरूप भी दान देकर इसकी प्रक्रिया से दूसरों की भलाई करने का भी उद्देश्य कार्यशील होता है। 

अज्ञात व्यक्तियों और परोपकारी संगठनों को दान का इतिहास

परोपकारिता का पता प्राचीन सभ्यताओं से लगाया जा सकता है जहाँ जीवित रहने के लिए सामुदायिक समर्थन महत्वपूर्ण था। प्राचीन ग्रीस और रोम जैसे समाजों में, धनी नागरिकों से सार्वजनिक कार्यों में योगदान देने और कम भाग्यशाली लोगों की सहायता करने की अपेक्षा की जाती थी। यह अवधारणा दान के अधिक संरचित रूपों में विकसित हुई, विशेष रूप से मध्य युग के दौरान जब धार्मिक शिक्षाओं ने गरीबों और बीमारों की मदद करने पर जोर दिया। भारतीय पृष्टभूमि में राजा हरिश्च्ंद्र और राजा बलि के दान की महिमा जनमानस की स्मृति में छाई रहती है। राजाओं, जमींदारों द्वारा सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए दान देने की अनेक कहानियाँ इतिहास में दर्ज हैं। 

मध्यकालीन काल में धार्मिक संस्थाओं ने दान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, मठों ने जरूरतमंदों को भोजन, आश्रय और देखभाल प्रदान की। दशमांश की अवधारणा – अपनी आय का एक हिस्सा दान करना – ईसाइयों और अन्य धार्मिक सामाजों के बीच व्यापक हो गई। भारत में आम जनता द्वारा मंदिरों में दान देने की प्रथा नई नहीं है। 

पुनर्जागरण और ज्ञानोदय काल में  व्यक्तिवाद और मानवतावाद के उदय ने व्यक्तिगत परोपकार को प्रोत्साहित किया। धनी संरक्षक व्यक्ति कलाकारों और विद्वानों का समर्थन करते थे, जबकि सार्वजनिक कल्याण के विचार ने गति पकड़नी शुरू कर दी थी।

DALL·E-2024-11-19-19.23.12-A-vibrant-and-glowing-artistic-representation-of-charity-and-donation-featuring-bright-colors-and-an-uplifting-atmosphere.-The-scene-includes-a-hand-1-1-300x300 धन दान के अपने होते हैं उद्देश्य
Donation for Charity

18वीं और 19वीं शताब्दी के औद्योगिक क्रांति ने धन के नये-नये अर्जन तरीकों को जन्म दिया और इसके कारण  महत्वपूर्ण धन असमानताएँ पैदा हुईं, जिससे कई धनी व्यक्ति सामाजिक मुद्दों को संबोधित करने के साधन के रूप में परोपकार में शामिल होने लगे। कई अत्यंत धनवानों ने  “धन के सुसमाचार” की वकालत की। ऐसे लोगों का सुझाव था  कि अमीरों का नैतिक दायित्व है कि वे अपने अधिशेष धन को अधिक से अधिक अच्छे परोपकारी कार्यों  के लिए वितरित करें।

दुनिया के सबसे अधिक धनवान माने जाने वाले लोगों ने अपने धन के कुछ भाग को विशेष उद्देश्यों के लिए दान देकर नयी परंपराओं की नींव डाला। कुछ दशक पूर्व में जॉन डी. रॉकफेलर  और हाल के दशक में  बिल गेट्स जैसे परोपकारी लोगों द्वारा वैश्विक स्तर पर विभिन्न सामाजिक मुद्दों को संबोधित करने के उद्देश्य से संगठन बनाने के साथ, उसकी नींव की स्थापना करना भी आम हो गई। इस संबंध में कई देशों में लाए गए टैक्स की बचत की सुविधा भी इसमें सहयोग किया है। दुनिया भर में आधुनिक सरकारें विशिष्ट कारणों के लिए कॉर्पोरेट दान को प्रोत्साहित करने के लिए विभिन्न कर छूट प्रणालियों को लागू करती हैं। ये प्रणालियाँ आम तौर पर पात्र धर्मार्थ संगठनों को किए गए योगदान के लिए कर कटौती या क्रेडिट प्रदान करती हैं। कर कटौती प्रावधान के तहत कंपनियाँ अपनी कर योग्य आय से दान की गई राशि घटा सकती हैं, जिससे उनकी समग्र कर-देयता प्रभावी रूप से कम हो जाती है। कर छूट संबंधी कई कानूनी और  आधुनिक मान्यता प्राप्त परोपकार सिद्धांत  अक्सर पारदर्शिता और जवाबदेही पर जोर देता है, जिसमें कई दानकर्ता गुमनाम रहना पसंद करते हैं, जो सार्वजनिक मान्यता के बिना निजी दान की ओर बदलाव को दर्शाता है। 

आधुनिक समाज में तकनीकी प्रगति से दान की पद्धति ने इलेक्ट्रोनिक रास्ता भी अख्तियार कर लिया है। यह दान सांस्कृतिक में आए बदलाव को दर्शाता है। GoFundMe जैसे ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म के उदय ने दान को लोकतांत्रिक बना दिया है, जिससे व्यक्ति सीधे और अक्सर गुमनाम रूप से विभिन्न कारणों का समर्थन करते हुए दान दे सकते हैं। ऐसे दान अच्छे या बुरे (जैसे आतंकावादी संगठनों को दिए जाने वाले) दान हो सकते हैं।  दान का इतिहास व्यक्तिगत उद्देश्यों और सामाजिक आवश्यकताओं के बीच एक जटिल अंतर्संबंध को दर्शाता है। जैसे-जैसे परोपकार करने की पद्धति और संस्कृति विकसित होता जा रहा है, यह संस्कृतियों और युगों में मानवीय करुणा और सामुदायिक एकजुटता की एक महत्वपूर्ण अभिव्यक्ति बनी हुई है।

हाल के वर्षों में औद्योगिक घरानों के द्वारा दिए जाने वाले अरबों, खरबों के दान मीडिया में आते रहे हैं। अमेज़ॅन के संस्थापक जेफ बेजोस की पूर्व पत्नी मैकेंजी स्कॉट ने हाल ही में 1952200000 रुपये दान किए हैं जो जिसके कारण उन्हें दुनिया की सबसे प्रभावशाली महिला परोपकारियों की सूची में पहला स्थान दिया गया है। स्कॉट ने 1,19,522 करोड़ रुपये ($14 बिलियन) से अधिक राशि का दान दिया है। उनका दान शिक्षा, समानता और सामुदायिक विकास पर ध्यान केंद्रित करते हुए विभिन्न कारणों तक सीमित रहा है। 1994 में उन्होंने अपने तत्कालीन पति जेफ बेजोस के साथ मिलकर दुनिया की सबसे बड़ी ऑनलाइन रिटेलर Amazon.com की स्थापना की। 2019 में तलाक के समझौते के तहत, उन्हें कंपनी में 4 प्रतिशत हिस्सेदारी मिली, जिसका मूल्यांकन ब्रिटानिका के अनुसार 2024 में $2 ट्रिलियन से अधिक हो गया था। इतने धन को कोई भी व्यक्ति किसी भी प्रकार से अपने व्यक्तिगत उपभोग में कभी खर्च नहीं कर सकते हैं। बेपनाह दौलत से दुनिया में व्याप्त अनेक समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। इसी सोच और संस्कृति की दिशा में अत्यंत धनवान व्यक्ति बीच-बीच में अपने धन के महत्वपूर्ण भाग को किसी खास कल्याणाकारी उद्देश्यों के लिए दान में देते रहे हैं। वैश्विक स्तर में दानवीरों की सूची में पश्चिम, विशेष कर अमेरिकी धनवानों के नाम अग्रणी रहे हैं, इसका एक कारण आधुनिक धन सृजन पद्धति में अमेरिकी नेतृत्व में नवाचार तकनीकियों का विकास भी है।  

विश्व के बड़े दानकर्ता या दानवीर में वॉरेन बफेट का नाम अग्रणी रूप से लिया जाता है। उन्होंने अपनी कुल संपत्ति $131 बिलियन में से कुल $56.7 बिलियन स्वास्थ्य और गरीबी उन्मूलन के लिए कर दिया है।   वहीं  सन् 2023 तक बिल और मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन और अन्य चैरिटी के माध्यम से  लगभग $4.1 बिलियन दान बिल गेट्स और मेलिंडा फ्रेंच गेट्स की ओर से किया गया था। इसके अलावा भी जॉर्ज सोरोस, जेफ़ बेजोसस, माइकल ब्लूमबर्ग, जिम और मर्लिन सिमंस आदि जैसे दारवीरों ने गरीबी और स्वास्थ्य क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य करने के लिए कई बिलियन डॉलर दान दिए हैं।  

यद्यपि भारतीय उद्योगपति विश्व के खरबपतिय सूची में स्थान पाते हैं, लेकिन वे विश्व से सबसे बड़े दानवीर की सूची में नाम पाने में असफल रहे हैं। हो सकता है कि वे गुप्त दान देते  हों, लेकिन सार्वजनिक घोषणा के अनुसार दान देने में वे फिसड्डी रहे हैं। तथापि कई नाम ऐसे हैं, जिनका मीडिया में यदाकदा उल्लेख होता रहा है। मीडिया में आए सुर्खियों के अनुसार ही यहाँ भारतीय दानवीरों और परोपकारियों के नाम सामने आए हैं।  जैसे –

अजीम प्रेमजी (लगभग $22 बिलियन),

जमशेदजी टाटा कुल अनुमानित दान: ₹8,29,734 करोड़,

शिव नादर कुल दान-वित्त वर्ष 2023 में ₹2,042 करोड़ से ज़्यादा।

मुकेश अंबानी कुल दान- वित्त वर्ष 2021 में लगभग ₹557 करोड़। 

कुमार मंगलम बिड़ला कुल दान- वित्त वर्ष 2021 में ₹377 करोड़।

नंदन नीलेकणी कुल दान- वित्त वर्ष 2021 में ₹183 करोड़।

गौतम अडानी कुल दान- वित्त वर्ष 2021 में ₹130 करोड़,  

अनिल अग्रवाल कुल दान: वित्त वर्ष 2021 में ₹130 करोड़।

रोनी स्क्रूवाला  कुल दान- ₹100 करोड़ की छात्रवृत्ति निधि सहित महत्वपूर्ण योगदान।

नितिन और निखिल कामथ  कुल दान- 2022 में ₹100 करोड़।

(यहाँ ऊपर दिए गए आंकडे के अलावा भी ये दानवीर अन्य स्रोत या गुप्त रूप से दान दिए हो सकते हैं। इसके अलावा भी अंतर्राष्ट्रीय और भारतीय स्तर पर अनेक दानवीर हैं, जिनके आंकड़े सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं हैं। दान देना एक प्राचीन परंपरा है। जब तक परोपकारिता की भावना जिंदा रहेगी, साधन सम्पन्न और धनवान सह्रदयी लोग दान देते रहेंगे।  

ये तमाम दान के आंकड़े यह संकेत देते हैं कि औद्योगिक क्रांति के बाद आए तकनीकी क्रांति ने कुछ उद्योग को इतने धन कमाने में सहायता किए हैं कि इन धन के मालिक उसे सार्वजनिक परोपकारिता के लिए उसे विभिन्न उद्देश्यों के लिए दान देते हैं और समाज को नये ढंग से आगे बढ़ने के लिए अपना योगदान देते हैं। जहाँ इन धनवानों के दानशीलता की प्रशंसा होती है, वहीं कुछ लोग सभ्यता में ऐसी व्यवस्था को स्थायी बनाने के लिए भी व्यवस्था के संचालकों की आलोचना करते जिसमें धन का प्रवास किसी एक दिशा की ओर जाती है। इन तर्क वितर्कों की अपनी कहानियाँ, पृष्टभूमि  और आधार है, लेकिन यह भी सत्य है कि यदि ये स्वंय आगे बढ़ कर अपने धन का दान न दें तो आज की कानूनी और सामाजिक स्थिति में उन्हें ऐसा करने से मजबूर भी नहीं किया जा सकता है। दुनिया भर में दान की प्रक्रिया निरंतर छोटे बड़े स्तर पर चलता रहता है। इस प्रक्रिया की पवित्रता बनाए रखा जाए तो इससे लाखों, करोड़ों इंसानों का भला किया जा सकता है। इसलिए दान की राशि का हमेशा सदुपयोग किया जाना सुनिश्चित करना बहुत जरूरी है। जहाँ कहीं भी ऐसी राशि का दुरूपयोग किया जाता है, उसे तुरंत रोकने की जरूरत होती है। दान की राशि किसी एक के हाथों से गुजर कर दूसरे के हाथों में उनके कल्याण के लिए ही होना चाहिए, ताकि इंसानी सभ्यता में स्थान पाए परोपकारिता की भावना हमेशा जिंदा रहे और फलता फूलता रहे। नेह।   

Share this content:

Post Comment

You May Have Missed

error: Content is protected !!
Skip to content