भारत के सैटेलाइट स्पेक्ट्रम पर विश्व के खरबपतियों के बीच होगी लड़ाई!
भारत की सरकार ने मंगलवार को कहा कि वह सैटेलाइट ब्रॉडबैंड के लिए प्रशासनिक रूप से स्पेक्ट्रम आवंटित करेगी, न कि नीलामी के माध्यम से। भारत के दूरसंचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मंगलवार को संवाददाताओं को बताया कि सैटेलाइट ब्रॉडबैंड के उपयोग के लिए एयरवेव को दुनिया भर में प्रशासनिक रूप से आवंटित किया गया है, और भारत उस प्रवृत्ति के अनुरूप कदम उठाएगा। लेकिन उन्होंने कहा कि सैटेलाइट ब्रॉडबैंड स्पेक्ट्रम मुफ्त नहीं दिया जा सकता है और स्थानीय नियामक इस संसाधन के मूल्य निर्धारण की देखरेख करेगा।
उधर भारत की सबसे बड़ी दूरसंचार कंपनी के प्रमुख मुकेश अंबानी एयरवेव को पहले की तरह नीलामी में बिक्री करने की मांग कर रहे हैं। यदि सरकार ने दूसरा रास्ता अपनाया तो भारत के सैटेलाइट स्पेक्ट्रम पर विश्व के खरबपतियों के बीच कोर्ट और इसके बाहर हो सकती है लड़ाई!
सिंधिया ने भारतीय उद्योगपतियों के उस चिंताओं को दूर करने की कोशिश करते हुए कहा कि जिन्हें चिंता है कि स्टारलिंक जैसे कंपनियों को सरकार से सस्ते में स्पेक्ट्रम मिल सकते हैं।
सरकार द्वारा तय की गई कीमत पर स्पेक्ट्रम आवंटन से स्टारलिंक जैसी विदेशी फर्मों को वॉयस और डेटा सेवाएं प्रदान करने की अनुमति मिल जाएगी तो यह रिलायंस जियो इन्फोकॉम लिमिटेड और भारती एयरटेल लिमिटेड के लिए एक व्यावसायिक खतरा है क्योंकि स्टारलिंक ऐसे समय में उनके विशाल ग्राहक आधार में से कुछ को कम कर सकता है जब फोन डेटा का उपयोग तेजी से बढ़ रहा है।
रिलायंस जियो और भारती क्रमशः भारत की सबसे बड़ी और दूसरी सबसे बड़ी ऑपरेटर हैं।
स्थानीय (भारतीय) वायरलेस ऑपरेटर, जिनमें मुकेश अंबानी का जीयो भी शामिल है, सरकार द्वारा पहले से तय कीमत पर सैटेलाइट ब्रॉडबैंड एयरवेव देने का विरोध कर रहे हैं, उनका कहना है कि इससे असमान खेल का मैदान बनता है क्योंकि उन्हें अपने स्थलीय वायरलेस फोन नेटवर्क के लिए स्पेक्ट्रम प्राप्त करने के लिए नीलामी में प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती है। स्थलीय वायरलेस फोन नेटवर्क के लिए सरकार ने नीलामी का मार्ग चुना था, जिसमें प्रतिस्पर्धा करते हुए नीलामी में कंपनियों ने भाग लिया था।
42 मिलियन वायर्ड (Wired) ब्रॉडबैंड इंटरनेट उपयोगकर्ताओं और 4G और 5G जैसे नेटवर्क पर 904 मिलियन दूरसंचार उपयोगकर्ताओं के साथ, भारत चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा दूरसंचार उपभोक्ता बाजार है।
डेटा रिपोर्ट के अनुसार, 2024 की शुरुआत में भारत में इंटरनेट की पहुंच 52.4% थी और अभी भी 25,000 गाँव बिना इंटरनेट के हैं। देश के अधिकतर छोटे बड़े शहरों में भी, कई इलाकों में फाइबर-आधारित तेज़ इंटरनेट उपलब्ध नहीं है।
दूरसंचार उद्योग की नब्ज पहचानने वाले एक विशेषज्ञ के अनुसार भारत के दूरसंचार क्षेत्र पर वर्षों से अपना दबदबा बनाए रखने वाली रिलायंस को अब चिंता है कि एयरवेव नीलामी में 19 बिलियन डॉलर खर्च करने के बाद वह मस्क के हाथों ब्रॉडबैंड ग्राहकों को खोने का जोखिम उठा रही है, और बाद में प्रौद्योगिकी के विकास के साथ संभावित रूप से डेटा और वॉयस क्लाइंट भी खो सकती है।
भारत सरकार का कहना है कि जो भी सैटेलाइट ब्रॉडबैंड के लिए आवेदन करता है, उसे प्रशासनिक रूप से स्पेक्ट्रम आवंटित करने का उसका निर्णय वैश्विक रुझानों के अनुरूप है। हालांकि सरकार ने प्रशासनिक रूप से स्पेक्ट्रम आवंटित करने की प्रक्रिया और समय सीमा शुरू नहीं की है। लेकिन इसके लिए एलन मस्क की सैटेलाईट इंटरनेट प्रदाता कंपनी स्टारलिंक ने पहले ही आवश्यक परमिट के लिए आवेदन कर दिया है।
स्टारलिंक को अभी भी देश में परिचालन शुरू करने के लिए सरकार की मंजूरी का इंतजार है। जाहिर है कि भारतीय बाजार में स्टारलिंक के प्रवेश से एलन मास्क और मुकेश अंबानी जैसे अरबपतियों के बीच एक नया युद्धक्षेत्र पैदा होगा और वह होगा सेवा के लिए मूल्य निर्धारण करना।
भारत की सबसे बड़ी दूरसंचार कंपनी रिलायंस जियो चलाने वाले अंबानी पिछले साल से ही “संतुलित प्रतिस्पर्धी परिदृश्य” की चर्चा कर रहे थे और मस्क को दूर रखना चाहते थे, क्योंकि विशेषज्ञों का कहना है कि स्पेक्ट्रम नीलामी के लिए बहुत अधिक निवेश की आवश्यकता होगी और विदेशी खिलाड़ी इतने निवेश करना नहीं चाहेंगी।
खबरों के अनुसार एलन मस्क के स्टारलिंग के पास हजारों ऑपरेशनल सैटेलाइट हैं। एक अन्य खबर में कहा गया है कि सैटेलाइट ब्रॉडबैंड के लिए मुकेश अंबानी के रिलायंस ने लक्जमबर्ग स्थित एसईएस एस्ट्रा के साथ साझेदारी की है, जिनके पास 38 सैटेलाइट होने का अनुमान है। सैटेलाइट ब्रॉडबैंड शुरू होने पर रिलायंस जियो इन्फोकॉम लिमिटेड इन सैटेलाईट का इस्तेमाल कर सकता है।
सैटेलाइट ब्रॉडबैंड शुरू होने और स्टारलिंक को अनुमति मिलने पर अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए स्टारलिंक उसी तरीके से आक्रामक नीति बना सकती है, जैसे रिलांयस ने शुरूआत में मुफ्त़ इंटरनेट और दूरसंचार सेवा प्रदान करके किया था। क्योंकि उसके पास सैटेलाइट के बेड़े पहले से ही मौजूद है और उसमें और कुछ जोड़ने की जरूरत नहीं पड़ेगी। स्टारलिंक मस्क की स्पेसएक्स की एक इकाई है, जिसके पास 4 मिलियन ग्राहकों को कम विलंबता ब्रॉडबैंड प्रदान करने के लिए पृथ्वी की परिक्रमा करने वाले 1,655 (फरवरी 2023), सक्रिय उपग्रह हैं, ने भारत में लॉन्च करने में सार्वजनिक रूप से रुचि व्यक्त की है, लेकिन इसकी योजनाओं को बार-बार नियामक बाधाओं का सामना करना पड़ा। स्पेसएक्स के पास पृथ्वी की परिक्रमा करने वाले उपग्रह हैं जिससे यह कई देशों में उपग्रह ब्रॉडबैंड सेवाओं के माध्यम से वैश्विक इंटरनेट कवरेज प्रदान करने वाला सबसे बड़ा उपग्रह ऑपरेटर बन गया।
केन्या के सफ़ारीकॉम (SCOM.NR) ने जुलाई में केन्या के नियामकों से शिकायत की थी कि स्टारलिंक जैसे खिलाड़ियों को स्वतंत्र रूप से काम न करने दिया जाए और उसे किसी मोबाइल नेटवर्क के साथ साझेदारी करने के बाद ही सेवा प्रदान करने के लिए अनुमति दी जाए। विश्व दूर संचार परिदृष्य में इस प्रकार के अनुभव के बाद हो सकता है कि भारत में भी स्टारलिंक को किसी स्थानीय साझेदार के साथ ही सेवा शुरू करने की अनुमति लेनी पड़ सकती है। हो सकता है जो कंपनियाँ स्टारलिंक के भारतीय बाजार में प्रवेश के पक्ष में नहीं हैं, वही इसके साथ साझेदारी निभाने के लिए आगे आएँ।
यदि एलन मस्क की कंपनी किसी नये और छोटे साझेदार कंपनी के साथ साझेदारी करती है तो भारतीय उपभोक्तओं को बेहद सस्ती सेवा मिलने की संभावना बनती है। लेकिन यदि रिलांयस या अन्य बड़ी कंपनी के साथ साझेदारी करेगी, तो सेवा और भी महंगी हो सकती है।
एलन मस्क ने पिछले साल भारत के दूरसंचार उपभोक्ता बाजार के संदर्भ में कहा था कि स्टारलिंक दूरदराज के भारतीय गाँवों या उन जगहों पर “अत्यधिक मददगार हो सकता है” जहाँ हाई-स्पीड सेवाओं की कमी है, और 2022 में उनके पूर्व भारत प्रमुख ने कहा कि उस समय स्टारलिंक ने लॉन्च के आठ महीनों के भीतर 200,000 ग्राहकों को लक्षित किया था।
उधर सैटेलाइट स्पेक्ट्रम के नीलामी और प्रशासनिक आवंटन के विवाद के बीच ट्राई प्रमुख ने कहा है कि सैटेलाइट स्पेक्ट्रम पर सभी हितधारकों के विचारों पर विचार किया जाएगा। भारतीय अखबार मिंट में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है यदि हितधारकों की रक्षा नहीं की गई तो भारतीय अरबपतियों की कंपनियाँ अंतिम विकल्प के रूप में कानूनी विकल्पों पर विचार कर सकती है।
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