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लाती है सोशल मीडिया अवसरों की बौछार

लाती है सोशल मीडिया अवसरों की बौछार

आज की दुनिया आज से  एक शताब्दि पूर्व की दुनिया से बहुत अलग है। यदि सौ वर्ष पूर्व के कोई नौजवान आज की दुनिया में आ जाए तो वह नये और अत्यंत गतिशील समाज को देख कर चक्करा जाएगा। सौ साल पहले की बात छोड़ कर आप सिर्फ पचास साल पीछे की दुनिया को देखेंगे तो  भी वह संचार के मामले पर बाबा आदम के जमाने का समाज दिखाई देगा। तब समाज में जनसंचार के नाम पर समाचार पत्र होते थे और थे संचार के लिए चिट्ठी पत्री, तार वगैरह। बहुत कम लोगों के पास टेलिफोन जैसी संचार सुुविधाएँ मौजूद होती थीं। तब टेलिफोन की पहुँच भी कम लोगों के पास थीं और अधिकतर यह सरकारी दफ्तरों या व्यापारिक केन्द्रों या धनवान परिवारों में व्यवहार में लाया जाता था। लेकिन आज पलक झपकते कोई भी समाचार पूरी दुनिया में फैल जाता है और इसके प्रभाव से किसी भी ग्रुप्स या समाज को वंचित नहीं किया जा सकता है। सोशल मीडिया की जन-जन तक पहुँच ने दुनिया की सूरत ही बदल दिया है। आज लाती है सोशल मीडिया अवसरों की बौछार और जिंदगी को सामाजिक परिदृष्ट से कट कर व्यक्तिगत केन्द्रों में सिमट कर रहने के लिए प्रेरित कर रहा है। 

कभी शैक्षणिक और आर्थिक रूप से पिछड़े समाज में संचार की गति बहुत मंद हुआ करती थी। आज भी पिछड़े समाज में अखबार और पत्रकाएँ बहुत कम पढ़ी जाती है। किसी विषय की गहराई से परिपूर्ण होने के लिए शैक्षणिक किताबों के सिवाय दूसरी किताबों को लेकर ज्ञान और जानकारी प्राप्त करने की ललक पिछड़े समाज में नहीं दिखती है। मानसिक पिछड़ेपन का यह भी यह मुख्य कारण है।  लेकिन सोशल मीडिया ने उन्हें भी किसी विकसित समाज की तरह संचार करने और उसका लाभ देने के लिए हाजिर है। यह अलग बात है कि समाज किस तरह सोशल मीडिया का व्यवहार करता है। वह इससे लाभ प्राप्त करने के लिए इसका प्रयोग करता है या अपना समय नष्ट करने के लिए, यह तो व्यक्ति के मानसिक स्तर और जागरूकता पर निर्भर करता है। नयी उम्र के बच्चों को इसका लाभ लेने का ख्याल नहीं आ सकता है, लेकिन समाज अपनी युवा पीढ़ी को इससे लाभ उठाने और समाज को मजबूत करने के लिए रास्ता दिखा सकता है। सोशल मीडिया के माध्यम से विभिन्न नेटवर्किंग ग्रुप्स समाज में विभिन्न सामाजिक समस्याओं को संबोधित करने के लिए महत्वपूर्ण अवसर प्रस्तुत करते हैं। सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म की अंतर्निहित क्षमताओं का लाभ उठाकर, समुदाय कनेक्शन को बढ़ावा दे सकते हैं, सूचना का प्रसार कर सकते हैं और संसाधनों को प्रभावी ढंग से जुटा कर उससे अपनी उत्पादकता बढ़ा सकते हैं। 

भारत में शिक्षा, संचार और नवाचार के संदर्भ में आदिवासी समाज को सबसे कम गतिशील समझा जाता है। लेकिन यदि शिक्षित और जागरूक समाज चाहे तो किसी भी अन्य समुदाय की तरह, आदिवासी समाज पर सोशल मीडिया का परिवर्तनकारी प्रभाव लाया जा सकता है। यहां कुछ तरीके दिए गए हैं जिनसे सोशल मीडिया के माध्यम से पिछड़े आदिवासी  समाज को नवाचार के लिए प्रेरित और प्रभावित किया जा सकता है।

सोशल मीडिया स्थानीय माईक्रो और बृहद मेक्रो यानी विशाल नेटवर्क के निर्माण की सुविधा देता है। मेक्रो या माईक्रो नेटवर्क के माध्यम से आदिवासी समुदायिक चुनौतियों को चुनौती दी जा सकती है और उसके समाधान के लिए रास्ता निकाला जा सकता है। Facebook समूह और अन्य सोशल प्लेटफ़ॉर्म किसी समाज के स्थानीय या विस्तृत रूप से फैले हुए निवासियों को कनेक्ट करने, संसाधनों को साझा करने और स्थानीय पहलों को व्यवस्थित करने की सुविधा देते हैं। ये नेटवर्क आपसी सहायता के लिए एक आधार के रूप में काम कर सकते हैं, जिससे समुदाय के सदस्य प्राकृतिक आपदाओं या आर्थिक कठिनाइयों जैसे संकटों के दौरान एक-दूसरे का समर्थन कर सकते हैं।

हाल के वर्षों में विश्व के विभिन्न देशों में किए गए अनेक उदाहरण है कि कैसे एक अच्छी तरह से संचालित स्थानीय नेटवर्क रचनात्मक चर्चाओं और सामुदायिक जुड़ाव को बढ़ावा दे सकता है, जिससे निवासियों को स्थानीय मुद्दों को सहयोगात्मक रूप से नेविगेट करने में मदद मिलती है। आज अलग-अलग जिलों, भौगोलिक क्षेत्रों या देश विदेश में रहने वाले एक समदर्शी समाज अपनी समस्याओं को सुलझान के लिए किसी एक सोशल नेटवर्क पर जमा होकर अपनी समस्याओं को सुलझाते हैं। यहां तक कि यूएनओ जैसे संगठन भी वैश्विक आपदाओं में सबसे पहले जनसंचार मीडिया और सोशल मीडिया के सहारे ही विश्व के जन-जन तक पहुँच बनाता है।  

सोशल मीडिया का सबसे महत्वपूर्ण क्रिया कनेक्टिविटी और संचार को व्यक्तिगत बना देने का है।यह किसी संदेश को सामाजिक बनाने के पूर्व व्यक्तिगत बना कर लोगों को अधिक प्रभावित करता है।  यह प्लेटफॉर्म भौगोलिक बाधाओं को पार करते हुए व्यक्तियों और समुदायों के बीच संचार और कनेक्टिविटी की अपनी भाषा में  सबसे आसान, सस्ता और सुविधा प्रदान करता है। अन्य संचार साधनों से रहित, शहरों और व्यापारिक गतिविधियों से दूर तथा दूर दराज के अगम भौगोलिक क्षेत्रों में रहने वाला आदिवासी  एक-दूसरे से जुड़ने, अनुभव साझा करने और समुदाय की भावना को मजबूत करने के लिए सोशल मीडिया का उपयोग कर सकते हैं। यह सोशल मीडिया आदिवासी समुदायों को वैश्विक समाजों के साथ अपनी संस्कृति, परंपराओं और भाषाओं का संरक्षण एवं संवर्धन करने, उसे दूसरों के साथ साझा करने और नई औद्योगिक तकनीकियों के साथ समंजस्य करने की सुविधा भी प्रदान करता है। 

दैनिक इतिहास की घटनाओं, महत्वपूर्ण घटनाक्रमों को संरक्षित करके उसका रिकार्ड बना कर उसे सामाजिक थाती बनाने के बदले आदिवासी समाज अपने ऐतिहासिक संदर्भों को नदी के बहाव में बहते हुए देखता रहता है। लेकिन यदि हम चाहें तो ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म का उपयोग आदिवासी  ज्ञान, लोककथाओं और प्रथाओं को दस्तावेज़ीकृत करने, उसका वस्तुनिष्ट रिकार्ड रखने और उसे बाद की पीढियों के लिए संरक्षित करने के लिए किया जा सकता है। सामाजिक मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए सोशल मीडिया एक शक्तिशाली उपकरण है। यह सामाजिक कार्यकर्ताओं को मानसिक स्वास्थ्य, पर्यावरण संबंधी चिंताओं और सामाजिक न्याय जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चाओं को सुविधाजनक बनाने के लिए जल्दी से वैश्विक पाठकों या हितरक्षकों तक पहुँचने की सुविधा देता है। सोशल मीडिया के माध्यम से वायरल होने वाले अभियान के लिए समर्थन और संसाधन जुटाए जा सकते हैं, जिससे जनता की राय और नीतिगत बदलाव प्रभावित हो सकते हैं। हाल ही में आदिवासी युवा लड़कियों पर हुए अत्याचारों का विरोध करने में सोशल मीडिया ने बहुत सहायता की थी।  व्यक्तिगत कहानियों और अनुभवों को साझा करने की क्षमता इन मुद्दों को मानवीय बनाने में भी मदद करती है, जिससे विविध दर्शकों के बीच सहानुभूति और समझ को बढ़ती है।

YouTube, LinkedIn और अन्य विशेष फ़ोरम जैसे प्लेटफ़ॉर्म शैक्षिक सामग्री प्रदान करते हैं जो उपयोगकर्ताओं को स्वास्थ्य से लेकर वित्तीय साक्षरता तक विभिन्न विषयों के बारे में जानने में मदद करते हैं।  सूचना तक यह पहुँच व्यक्तियों को अपनी परिस्थितियों को सुधारने या बदलाव की वकालत करने के लिए आवश्यक ज्ञान से सशक्त बना सकती है। उदाहरण के लिए, Google Classroom जैसे प्लेटफ़ॉर्म पर शैक्षिक पहल छात्रों और शिक्षकों के बीच सहयोगात्मक शिक्षण को सक्षम बनाती है, जिससे वंचित समुदायों में शैक्षिक परिणामों में वृद्धि होती है। Instagram और TikTok  से आप अपने ब्रांड बना सकते हैं। सोशल मीडिया के सहारे भौगोलिक रूप से कटे हुए क्षेत्र के आदिवासी घर बैठे भी विश्व स्तरीय शैक्षणिक व्यवस्थाओं से लाभ उठा सकते हैं। अमेरिका और यूरोपीय विश्वविद्यालयों के निशुल्क शैक्षणिक कार्यक्रमों में समूह बना कर भाग लिया जा सकता है। सोशल मीडिया के ग्रुप्स इन विश्वविद्यालयों में दाखिला लेकर स्थानीय रूप से कैन्टैक्ट क्लासेस में शामिल हो सकते हैं। कंटेंट क्रिएशन में आदिवासी युवा आगे आकर पूरी दुनिया में छा सकते हैं। सोशल मीडिया मार्केटिंग का सबसे बड़ा हब है, आप इसके माध्यम से किसी भी पेशा को आगे बढ़ाने के लिए मार्केटिंग का सहारा ले सकते हैं। 

 सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं को अपनेपन और समुदाय की भावना प्रदान करके  मानसिक स्वास्थ्य सहायता को बढ़ावा देकर मानसिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव डाला जा सकता है।  ऑनलाइन सहायता समूह समान चुनौतियों का सामना करने वाले व्यक्तियों को जुड़ने और मुकाबला करने की रणनीतियों को साझा करने की सुविधा देते हैं। शोध से पता चला है कि सोशल मीडिया का नियमित उपयोग बेहतर सामाजिक कल्याण और मानसिक स्वास्थ्य परिणामों से संबंधित है, खासकर जब उपयोगकर्ता सकारात्मक बातचीत में संलग्न होते हैं। न्यूज और व्यूज के मामले में सोशल मीडिया अन्य मीडिया से आगे चल रहा है। आर्टिफिशियल इंटैलिजेंस ने सोशल मीडिया को और भी शक्तिशाली बना दिया है।  

 व्यावसायिक व्यापार की दुनिया से दूर रहने वाला आदिवासी समाज हाल के वर्षों में व्यापार के महत्व को समझने लगा है और इसकी ओर वह मुडने लगा है।  लिंक्डइन जैसे सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म व्यक्तियों को भौगोलिक सीमाओं से परे अपने व्यावसायिक नेटवर्क का विस्तार करने में सक्षम बनाते हैं। यह नेटवर्किंग नए रोजगार के अवसर, मेंटरशिप और सहयोग को जन्म दे सकती है जो अन्यथा संभव नहीं हो सकता था। विविध पेशेवरों को जोड़कर, सोशल मीडिया एक ऐसा वातावरण तैयार करता है जहाँ सामाजिक समस्याओं के अभिनव समाधान सामने आ सकते हैं। जिन्हें लिंक्डइन के सोशल नेटवर्किंग की शक्ति के बारे कुछ मालूम नहीं, लेकिन व्यापार की दुनिया में कदम रखना चाहते हैं, वे इसकी सुविधाजनक सूचना स्रोतों का उपयोग करके व्यापार के क्षेत्र में आगे बढ़ सकते हैं। आदिवासी समुदाय शैक्षिक उद्देश्यों के लिए सोशल मीडिया का उपयोग कर सकते हैं, जानकारी, ऑनलाइन पाठ्यक्रम और संसाधनों तक पहुंच प्रदान कर सकते हैं जो व्यक्तियों को नए कौशल और ज्ञान के साथ सशक्त बना सकते हैं। 

सोशल मीडिया इसके सदस्यों को अनेक क्षेत्रों से संबंधित विषयवार और विशिष्ट विविरणात्मक सूचनाएँ देकर जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर सकता है।  संक्षेप में कहें तो सोशल मीडिया आदिवासी लोगों को उनके अधिकारों के बारे में जागरूकता बढ़ाने, सामाजिक न्याय की वकालत करने और उनके मुद्दों के लिए समर्थन जुटाने के लिए एक मंच प्रदान करता है। सामुदायिक कार्यकर्तागण भूमि अधिकार, पर्यावरण संरक्षण और सांस्कृतिक संरक्षण जैसे मुद्दों पर प्रकाश डालने के लिए सोशल मीडिया का उपयोग कर सकते हैं। पाँचवी अनुसूची, छटवीं अनुसूची, पंचायत स्तर के विकास योजनाओं से जुड़ने के लिए सोशल मीडिया बहुत सुविधा देती है।  

स्वास्थ्य सेवा, कृषि और अन्य आवश्यक सेवाओं के बारे में जानकारी सोशल मीडिया के माध्यम से प्रसारित की जा सकती है। इसके अलावा भी सोशल मीडिया आदिवासी उद्यमियों, कलाकारों और शिल्पकारों को अपने उत्पादों को प्रदर्शित करने और बेचने के लिए एक मंच प्रदान करके आर्थिक आय के लिए विभिन्न अवसर के रास्तों को खोल सकता है। ऑनलाइन मार्केटप्लेस और क्राउडफंडिंग आदिवासी व्यवसायों को व्यापक दर्शकों और स्रोत फंडिंग तक पहुंचने में मदद कर सकते हैं। कृषि उत्पादों को बाजार तक लाने और उसका सही मूल्य प्राप्त करने के लिए स्थानीय बाजार के उपभोक्ताओं और कृषि उत्पादकों के बीच के लिए सोशल मीडिया को बढ़िया लिंक बनाया जा सकता है। अन्यता इन उत्पादों से मिडिएटर यानी दलाल लाभ उठाते हैं।  आदिवासी समुदाय आदिवासी  मुद्दों से संबंधित ग्रामीण परियोजनाओं पर सहयोग करने में रुचि रखने वाले संगठनों, शोधकर्ताओं और व्यक्तियों से जुड़ने के लिए सोशल मीडिया का उपयोग कर सकते हैं।  नेटवर्किंग के अवसरों से ऐसी साझेदारियाँ बन सकती हैं जो सामुदायिक विकास पहलों का समर्थन करती हैं। आदिवासी समाज सोशल मीडिया के माध्यम से गलत सूचना के प्रसार या सांस्कृतिक विनियोग के प्रति संवेदनशील हो सकते हैं। 

कई लोगों द्वारा व्यक्त की गई यह आशंका आंशिक रूप से सही भी है कि सामाजिक स्तर पर सोशल मीडिया के गहरे प्रयोग से कई सामाजिक पारंपरिक प्रथाओं, विश्वासों और व्यवहारों और रीति तरीकों में अपूर्णनीय क्षति पहुँच सकती है। आधुनिक और पारंपरिक मूल्यों का मिश्रण हो सकता है और संकर संस्कृति का समाज में प्रवेश हो सकता है। इसके माध्यम से गलत सूचनाएँ समाज में घर कर सकती है। लेकिन  यह ग़लत सूचना की चुनौतियों से भी निपटने में मदद कर सकता है। गलत सूचनाओं के मुद्दों को संबोधित करना और यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि आदिवासी संस्कृतियों, भाषाओं में प्रगतिशील नवाचार का प्रवेश हों साथ ही भाषा, संस्कृति, भूमि या नारी संरक्षण आदि आंदोलन में ईमानदार प्रतिनिधित्वों का सटीक और सम्मानजनक भागीदारी सुनिश्चित हो। सोशल मीडिया के द्वारा राजनैतिक चेतना और जागरूकता आता है और इसका लाभ समाज को मिलता है यह अपने आप में स्पष्ट है। 

यह पहचान करना महत्वपूर्ण है कि आदिवासी समाज पर सोशल मीडिया का प्रभाव संदर्भ-विशिष्ट है, और परिणाम व्यापक रूप से अनुकूल है।  जबकि सोशल मीडिया मूल्यवान अवसर प्रदान कर सकता है, इसके उपयोग को सांस्कृतिक संवेदनशीलता और संभावित चुनौतियों के साथ जागरूकता भरे दृष्टिकोण से प्रयोग करना जरूरी है। इसके अतिरिक्त, डिजिटल विभाजन को पाटने और आदिवासी  समुदाय के सभी सदस्यों के लिए सोशल मीडिया के लाभों तक समान पहुंच सुनिश्चित करने का प्रयास किया जाना अत्यावश्यक है। नेह।

 

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