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लगातार लोस दिखाने वाली कंपनी का विशेष ऑडिट की मांग कर सकते हैं मजदूर

चाय बागान, डुवार्स

लगातार लोस दिखाने वाली कंपनी का विशेष ऑडिट की मांग कर सकते हैं मजदूर

भारत में,  ‘कंपनी अधिनियम, 2013’ और ‘आयकर अधिनियम, 1961’ के कई प्रावधानों के तहत लगातार लोस दिखाने वाली कंपनी का विशेष ऑडिट की मांग कर सकते हैं मजदूर। जब कोई कंपनी अपने खातों में लगातार घाटे की रिपोर्ट करती है, कर्मचारियों, मजदूरों के भुगतानों में असफल रहती है, कर्मचारियों, मजदूरों को दी जानी वाली तय सुविधाएँ नहीं दी जाती है या उसमें कंपनी के द्वारा लोस दिखा कर कटौती की जाती है, तो ऐसी कंपनियों के कामकाज प्रणालियों, योजनाओं, प्रबंधन कौशल, आय-व्यय के निर्णयगत प्रबंधन आदि की जाँच करने के लिए कंपनी के कर्मचारियों और मजदूरों द्वारा मांग की जा सकती है। पश्चिम बंगाल के चाय बागानों के मजदूर आर्थिक शोषण से बचने और अपने साथ हो रहे भेदभाव, अन्याय और वंचना से बचने के लिए कानून में दिए गए इन प्रावधानों का सहारा ले सकते हैं।

पिछले कई सालों से पश्चिम बंगाल के चाय बागानों के आर्थिक स्वास्थ्य के बारे मीडिया में कई नाकारात्मक खबरें लगातार आ रही है। टी बोर्ड की रिपोर्ट में भी चाय पत्तियों के उत्पादन में गिरावट ही बताया जा रहा है। इन गिरावटों में कुछ हिस्सा जलवायु परिवर्तन का जरूर है, लेकिन अधिकतर भाग मानवनिर्मित है।  कुछ चाय बागानों की आर्थिक हालात इतने खस्ताहाल है कि वे मजदूरों को कई सप्ताह तक न तो वेतन देते हैं और न ही रिटायर होने वाले मजदूरों को ग्रेज्युएटी। कई बागानों में गैर कानूनी रूप से प्रत्येक महीने एक दो लाख रूपये को रिटायर होने वाले मजदूरों में बाँटा जाता है और उनके कानूनी रूप से पूरे ग्रेज्युएटी पाने के अधिकार का हनन किया जाता है। ट्रेड यूनियन के नेता और राजनैतिक पार्टियों के नेतागण इन मामलों में फिसड्डी साबित होते रहे हैं।

कई मजदूर लगातार कोशिश के बाद भी जब कंपनियों से अपने भुगतान राशि नहीं पाते हैं तो श्रम विभाग के दफ्तरों में जाते हैं और वहाँ से उन्हें देर से ही सही, लेकिन अपने ग्रेज्युएटी की राशि मिल जाती  हैं। कानून का सहारा लेने पर न्याय पाने की दर बढ़ जाती है।  कई बार वहाँ भी उन्हें पूर्ण न्याय नहीं मिलते, क्योंकि मजदूरों का रिकार्डों का रखरखाव ही ठीक से नहीं किया जाता है। इन तमाम कमियों को दूर करने के लिए बागान प्रबंधन के कार्यों का ऑडिट होना निहायत ही अनिवार्य बन जाता है। स्पेशल ऑडिट का प्रावधान कानून में उपलब्ध है, लेकिन उसे सक्रिय करने के लिए मजदूरों को आगे आना होगा।

इस साल पश्चिम बंगाल के चाय बागानों में बोनस को लेकर महौल बहुत अशांत रहा। पिछले साल मजदूरों को 19% के दर से बोनस का भुगतान किया गया था, लेकिन इस बार उन्हें सिर्फ 16% बोनस ही मिला। अधिकतर बागानों में बोनस का दर इससे भी बहुत कम रहा है।  कम बोनस को लेकर अधिकतर चाय बागानों में मजदूर आंदोलनरत रहे। वे बोनस समझौता करने वाले नेताओं को दरकिनारा करके खुद नेतृत्व का बगडोर संभाले।  कई बागानों में काम बंद करके आंदोलन किया गया, वहीं कई चाय बागानों के मजदूर रोड और हाईरोड में उतर कर आंदोलन किए। बोनस के प्रतिशत-विवाद के चलते पहाड़ के एक दर्जन चाय बागानों में आंशिक या पूर्ण तालाबंदी की घोषणा कर दी गई। मजदूरों का कहना है कि वे नियमों के तरह पूर्ण काम करते हैं और उन्हें कंपनी से पूरा वेतन और बोनस मिलना चाहिए। यदि बागान लोस में है तो उसके लिए उन्हें जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है, इसके लिए बागान प्रबंधन जिम्मेदार हैं।

डुवार्स और पहाड़ के कई चाय बागान लगातार घाटा दिखा कर मजदूरों के वेतन और अन्य सुविधाओं में लगातार कटौती कर रहे हैं। 2015 में हुए त्रिपक्षीय वेतन समझौते के अनुसार कुल तय वेतन का 43% मजदूर को नकद राशि के रूप में भुगतान किया जाता है और बाकी मजदूरी कंपनी के द्वारा दिया जाने वाला फ्रिंज बेनेफिट्स के तहत विभिन्न सुविधाओं के रूप में मिलता है, जिसके लिए प्रबंधन मजदूरी के 57% राशि को अपने पास रख लेता है और उस राशि को मजदूरों को प्राप्त होने वाले विभिन्न सुविधाओं पर खर्च करता है। चाय मजदूरों को तय वेतन का पूरा हिस्सा न देना अन्यायकारी व्यवस्था है। सरकार, चाय बागान मालिक और ट्रेड यूनियन के द्वारा किया जाने वाला ऐसा वेतन समझौता मजदूरों के प्रति भेदभावपूर्ण है। किसी भी उद्योग में आधे से अधिक वेतन को प्रबंधन के हवाले नहीं किया जाता है, लेकिन चाय उद्योग में ऐसा होता रहा है और इसे दूर करने के लिए कोई निवारण उपाय अभी तक नहीं किया गया है।  57% के मजदूरी का भुगतान फ्रिंज बेनेफिट्स के द्वारा की जाती है, लेकिन इसकी निगरानी, जाँच की कोई पुख्ता व्यवस्था सरकार और ट्रेड यूनियन के द्वारा नहीं की गई है और फ्रिंज बेनेफिट्स की राशि बागान प्रबंधन द्वारा रख लिए जाने के बावजूद उसका भुगतान ठीक ढंग से नहीं किया जाता है और फ्रिंज बेनेफिट्स के माध्यम से मजदूरों का आर्थिक शोषण किया जाता है। यह आर्थिक शोषण कई वर्षों में अरबों रूपये से अधिक का हो जाता है।

डुवार्स और तराई के ऐसे मुट्ठी भर बागान होंगे जहाँ फ्रिंज बेनेफिट्स ठीक से 100% दिए जाते हैं। चाय बागानों में फ्रिंज बेनेफिट्स के तहत दिया जाने वाला स्वास्थ्य व्यवस्था के संचालन के लिए कानून में दी गई व्यवस्था का अनुपालन नहीं किया जाता  है। अधिकांश चाय बागानों में क्वालिफाईड डाक्टर और नर्स उपलब्ध नहीं है। अस्पताल और डिस्पेंसरी में जीवन रक्षक दवाईयों का अभाव होता है। सिर्फ कुछ दर्जन चाय बागानों में ही रेगुलर एंबुलेंस उपलब्ध हैं।  मजदूर के बच्चों को स्कूल पहुँचाने और लाने के लिए स्कूल बस सिर्फ कुछ ही चाय बागानों में है। मजदूरों के क्वार्टरों का रखरखाव शायद ही किसी चाय बागान में नियमानुसार किया जाता है। रास्ता घाट, छाता, तिरपाल, जुता, चप्पल, मजदूरों को दी जाने वाली तैयार चाय आदि तय क्वालिटी के नहीं होते हैं। इसके अलावा भी अनेक फ्रिंज बेनेफिट्स मजदूरों को नियमानुसार मिलते ही नहीं हैं। पश्चिम बंगाल में फ्रिंज बेनेफिट्स मजदूर शोषण का मुख्य उपकरण बन गया है। न्यूनतम वेतन में इसे फ्रिंज बेनेफिट्स से हटा कर सीधे नकद के रूप में मजदूरों को दिया जाना चाहिए, क्योंकि फ्रिंज बेनेफिट्स के तहत मिलने वाली अधिकांश सुविधाएँ मजदूरों को पंचायत के द्वारा मिल रहा है।

चाय बागान चाय के पत्तियों के उत्पादन के आधार पर चलते हैं। इसके लिए चाय के पौधों का स्वास्थ्य होना अनिवार्य होता है। कई चाय बागानों में चाय के अधिकतर पौधे अस्वास्थ्य हैं और वहाँ क्वालिटी चाय पत्तियों का उत्पादन बहुत कम होता है। जिसके कारण उच्च कोटी के चाय का उत्पादन नहीं हो पाता है और बाजार में उसकी कीमत कम होती है। वहीं कई बागानों  में पत्तों में केमिकल छिटकाव, उर्वरकों का इस्तेमाल अधिक मात्रा में होने, प्रबंधन कौशल की कमी के कारण तैयार माल स्तरीय नहीं हो पाता है, जिसके कारण बागान का आय घट जाता है और   आर्थिक रूप से रूग्न हो जाता है। यह भी आरोप लगाया गया है कि कई चाय बागान के प्रबंधन बागान के नाम पर बैंकों से ऋण लेकर अपने इतर व्यवसायों में लगाते है और चाय बागान को सिर्फ ऋण प्राप्ति के लिए इस्तेमाल करते हैं। इसका सीधा असर मजदूरों के आय पर पड़ता है।

कई चाय बागानों में पेशेवर प्रबंधकों की नियुक्ति न करके रिश्तोंदारों को प्रबंधन की जिम्मेदारी देने के भी आरोप लगाए गए हैं। ऐसे में चाय बागानों का संचालन पेशेवर अंदाज में नहीं होने के कारण भी रूग्न हो जाते हैं। चाय बागानों में मजदूरों को सिर्फ 250 रूपये दैनिक मजदूरी दी जाती है, इसके कारण भी मजदूर चाय बागानों में काम करने में रूचि नहीं रखते हैं। ट्रेड यूनियन के नेताओं को चाय बागानों में ऐसे काम दिए जाते हैं, जिसका उन्हें कोई गहरा अनुभव नहीं होते हैं। ऐसे तमाम कारण और कारकों से चाय उद्योग रूग्न होता जा रहा है और इसके कारण मजदूरों का आर्थिक शोषण गहराता जा रहा है।

न्यूनतम वेतन न देना, बोनस कम देना, पीएफ की राशि वेतन से काट कर भी उसे पीएफ ऑफिस में जमा न करना, उसे कंपनी के बाहर किसी अन्य व्यवसाय में लगाना, ग्रेज्युएटी न देना, फ्रिंज बेनेफिट्स में गैर कानूनी कटौती करना, चाय बागानों को गैर पेशेवर तरीके से चलाना आदि ऐसे कारण हैं, जिसे दूर करने और बागान की रूग्णता के असली वजहों को जानने के लिए चाय बागान का विशेष सरकारी ऑडिट करना अनिवार्य बन जाता है। लेकिन अब तक का इतिहास बताता है कि ट्रेड यूनियन, सरकार या किसी सरकारी कंपनी ने रूग्ण चाय बागान का कोई ऑडिट नहीं कराया है। ऐसे में मजदूरों का दायित्व बन जाता है कि वे खुद नियमों के तहत आगे आएँ और कंपनियों का विशेष ऑडिट कराने के लिए सरकार और कोर्ट में आवेदन करें।

कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 143 यह अनिवार्य करती है कि प्रत्येक कंपनी को अपने खातों का सालाना ऑडिट करवाना चाहिए। यदि कर्मचारियों को वित्तीय अनियमितताओं या कुप्रबंधन का संदेह है, जिसके कारण नियमित घाटा हो रहा है, तो वे इस प्रावधान के तहत विशेष ऑडिट का अनुरोध कर सकते हैं। ऑडिटर को कंपनी की वित्तीय स्थिति का सटीक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए सभी खातों और वाउचर तक पहुंचने का अधिकार है।

इस समिति का मुख्य उद्देश्य कंपनी की वित्तीय रिपोर्टिंग और आंतरिक नियंत्रण की निगरानी करना है। यदि कंपनी के किसी कर्मचारी को यह संदेह होता है कि कंपनी की वित्तीय प्रथाओं में गड़बड़ी है, या बार-बार बिना किसी स्पष्ट औचित्य के नुकसान हो रहा है, तो वे इस समिति से संपर्क कर सकते हैं। यह समिति कंपनी के वित्तीय लेन-देन की पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए बनाई जाती है, ताकि कंपनी में किसी प्रकार की धोखाधड़ी या अनियमितताओं को रोका जा सके।

कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 210  विशेष ऑडिट की अनुमति देता है। यदि केंद्र सरकार या उसके द्वारा अधिकृत कोई व्यक्ति यह मानता है कि कंपनी की वित्तीय सेहत के बारे में चिंताओं के कारण कंपनी के खातों की पुस्तकों का निरीक्षण करना आवश्यक है। आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 142 (2 ए) के तहत, यदि मूल्यांकन अधिकारी को संदेह है कि किसी कंपनी के खातों को सही तरीके से बनाए नहीं रखा गया है या जटिलता या मात्रा के कारण उनकी शुद्धता पर संदेह है, तो वे विशेष ऑडिट का निर्देश दे सकते हैं।

कर्मचारी या मजदूर अपनी चिंताओं को कर अधिकारियों के ध्यान में ला सकते हैं, जो कंपनी की वित्तीय प्रथाओं की जांच शुरू कर सकते हैं। निष्कर्ष जब कोई कंपनी लगातार घाटे में चल रही हो, तो कर्मचारी ऑडिट और जांच की मांग करने के लिए इन प्रावधानों का लाभ उठा सकते हैं। कंपनी अधिनियम समितियों के माध्यम से नियमित ऑडिट और निरीक्षण के लिए एक रूपरेखा प्रदान करता है, जबकि आयकर अधिनियम विशिष्ट परिस्थितियों में विशेष ऑडिट की अनुमति देता है।

कर्मचारियों को विशेष ऑडिट और जांच की मांग करने की अनुमति देने वाले अधिनियम
कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 210-213 के तहत, सरकारी अधिकारियों या अदालतों को किसी कंपनी के मामलों की जांच का आदेश देने का अधिकार देती है, अगर वह घाटे में चल रही हो या उसकी कार्यशैली संदिग्ध हो। इस अधिनियम के तहत, कर्मचारी किसी कंपनी के वित्तीय मामलों में विशेष ऑडिट या जांच की मांग कर सकते हैं, अगर लगातार घाटा हो रहा हो या वित्तीय कुप्रबंधन के संकेत हों।

औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 के तहत कर्मचारी वित्तीय कुप्रबंधन, वेतन का भुगतान न करने और भविष्य निधि और ग्रेच्युटी जैसे लाभों के बारे में औद्योगिक विवाद उठा सकते हैं। इससे श्रम न्यायालयों द्वारा जांच या कार्रवाई हो सकती है।

वेतन भुगतान अधिनियम, 1936, कर्मचारी भविष्य निधि और विविध प्रावधान अधिनियम, 1952 और ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम, 1972 के तहत यह सुनिश्चित करना सरकार की जिम्मेदारी है कि कंपनियाँ समय पर वेतन, भविष्य निधि, ग्रेच्युटी और बोनस का भुगतान कर रही हैं। गैर-अनुपालन के कारण दंड, अभियोजन और कानूनी कार्रवाई हो सकती है।

इसके अलावा भी कर्मचारी के न्यायालय जाने का अधिकार है। कर्मचारी औद्योगिक विवाद अधिनियम या वेतन भुगतान अधिनियम के तहत श्रम न्यायालयों या औद्योगिक न्यायाधिकरणों से संपर्क कर सकते हैं। भविष्य निधि, ग्रेच्युटी और अन्य अधिकारों के लिए, वे कर्मचारी भविष्य निधि अपीलीय न्यायाधिकरण में या ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम जैसे प्रासंगिक कानूनों के तहत भी मामले दर्ज कर सकते हैं।

बोनस कम मिलने पर मजदूरों ने ट्रेड यूनियन के नेताओं के बिना भी आंदोलन के रास्ते पर उतरे और सरकार का ध्यान आकृष्ट किया है। यदि वे अपने साथ हो रहे अन्याय, भेदभाव और शोषण का विरोध करना चाहें तो उन्हें सरकार और कोर्ट से ऐसे तमाम चाय बागानों के विशेष ऑडिट की मांग करने के लिए आगे आना होगा। विशेष ऑडिट होने से चाय बागानों में शोषण के लिए चल रहे गोरखधंधों का पर्दाफाश हो जाएगा और मजदूरों को इसका सीधा लाभ मिलेगा। नेह।

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