दुखद घटना के बाद कंपनियाँ कर रही कार्य संस्कृति पर पुनर्विचार
दुखद घटना के बाद कंपनियाँ कर रही कार्य संस्कृति पर पुनर्विचार, जैसे कि हर किसी चर्चित घटना के बाद उस घटना से प्रभावित हुए लोग नयी सोच से प्रेरित होकर समाधान के नये रास्ते तलाशते हैं। कार्य की कथित अधिकता से उपजे तनाव से, EY अर्नेस्ट यांग की एक कर्मचारी की हुई मौत ने बड़ी कंपनियों को अपने कार्य संस्कृति पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर कर दिया है। इस घटना की देश भर में चर्चा हुई है और सरकार ने इसकी जाँच शुरू कर दी है।
EY की 26 वर्षीय कर्मचारी अन्ना सेबेस्टियन पेरायिल की हाल ही में काम के तनाव के चलते मौत हो गई, जिसने कार्य-जीवन संतुलन पर व्यापक बहस को जन्म दिया। इस दुखद घटना के बाद कंपनियाँ कर रही कार्य संस्कृति पर पुनर्विचार औैर कई नये सुधार लाने पर विचार कर रही हैं, क्योंकि उन्हें अमानवीय शोषण करने और कर्मचारियों से अत्यधिक काम लेने के आरोपों का सामना करना पड़ रहा है।
अन्ना की मौत ने देश भर में कार्य-जीवन संतुलन पर ध्यान केंद्रित कर दिया, और कई पूर्व कर्मचारी भी अब खुलकर अपने अनुभव साझा कर रहे हैं। इस घटना के बाद, कई बड़ी और अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों ने मानसिक स्वास्थ्य और कार्य-जीवन संतुलन को प्राथमिकता देना शुरू कर दिया है।
द इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, अब डेलोइट, EY, PwC, और KPMG जैसी अंतर्राष्ट्रीय कंसल्टिंग फर्मों के जूनियर कर्मचारी अपने वरिष्ठों से पहले की तुलना में अधिक सम्मान और समर्थन प्राप्त कर रहे हैं। कंपनियाँ अब कर्मचारियों से काम के दबाव और तनाव के मुद्दों पर सक्रिय रूप से प्रतिक्रिया लेने लगी हैं।
अर्न्स्ट एंड यंग (EY), डेलोइट, KPMG जैसी बड़े और अच्छे भुगतान करने वाले कई वैश्विक परामर्श फर्म और Google और Yahoo जैसी प्रौद्योगिकी दिग्गज अपने कर्मचारियों से लंबे समय तक काम करने की मांग करने के लिए जानी जाती हैं। जबकि अधिकांश देशों में आधिकारिक कार्य घंटे आम तौर पर प्रति सप्ताह 40-44 घंटे तक सीमित होते हैं, परामर्श फर्म और तकनीकी कंपनियां अक्सर कर्मचारियों से पीक प्रोजेक्ट चक्रों के दौरान अधिक काम करने की मांग करती हैं।
इन कंपनियों के कर्मचारी अक्सर सरकार द्वारा तय मानक 9-घंटे के कार्य दिवस से कहीं ज़्यादा काम करवाने की रिपोर्ट करते हैं, खासकर गहन प्रोजेक्ट डेडलाइन के दौरान। अंतर्राष्ट्रीय स्तर के कंसल्टिंग उद्योग में 12-16 घंटे के कार्यदिवस के बारे में सुनना आम बात है, हालाँकि भारत में फ़ैक्टरी अधिनियम के तहत नियम आम तौर पर प्रति सप्ताह 48 घंटे काम करने की सीमा तय करते हैं। अधिकतर संस्थानों में कार्य घंटे से अधिक कार्य के लिए डबल पारिश्रमिक भुगतान के लिए पहले ही नियम बने हुए हैं।
तकनीकी कंपनियाँ, हालाँकि वे लचीले कार्य वातावरण और नीति की पेशकश करने के लिए जानी जाती हैं, फिर भी कर्मचारियों को लंबे समय तक काम करना पड़ सकता है, खासकर उत्पाद विकास और इंजीनियरिंग जैसी उच्च-दांव वाली भूमिकाओं में। हालाँकि, तकनीकी फ़र्म अक्सर परामर्श फ़र्म की तुलना में कार्य-जीवन संतुलन पर ज़ोर देती हैं।
भारत में, काम के घंटे कानूनी तौर पर प्रति सप्ताह 48 घंटे तक सीमित हैं, और प्रति दिन अधिकतम 9 घंटे हैं, हालांकि ओवरटाइम में कार्य करना आम बात है ।
यद्यपि ये कंपनियाँ अपने ऑफर लेटर आदि में कार्य के अधिक घंटे के जिक्र नहीं करते हैं। लेकिन आर्थिक दबाव और प्रतिस्पर्धी कॉर्पोरेट संस्कृतियाँ अक्सर कर्मचारियों को लंबे समय तक काम करने के लिए मजबूर करती हैं।
ऐसा नहीं कि हर बड़ी कंपनी अपने कर्मचारियों को पूरे दबाव देकर काम लेती हैं। ऐसी कई विश्व स्तरीय कंपनियाँ भी हैं, जो ऐसी अभिनव कार्य संस्कृतियाँ पर कार्य करती हैं, जो कर्मचारियों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करती हैं।
लाइरा और अन्य कंपनियाँ लचीली कार्य व्यवस्था अपना रही हैं, जिससे कर्मचारियों को अपने काम के घंटों पर नियंत्रण मिलता है, जिससे तनाव कम होता है और बेहतर मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा मिलता।
कॉकरोच लैब्स जैसी फ़र्म समर्पित मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम पेश करती हैं, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि कर्मचारियों को स्वस्थ कार्य-जीवन संतुलन बनाए रखने के लिए सहायता मिले।
कई भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों ने कार्य संस्कृति पर विचार करते हुए, स्वास्थ्य कार्यक्रम शुरू किए हैं जो शारीरिक स्वास्थ्य और सकारात्मक कार्य वातावरण को बढ़ावा देने के लिए टीम स्पोर्ट्स, ध्यान या फिटनेस चुनौतियों को प्रोत्साहित करते हैं। कार्यालयों में लाईब्रेरी, व्यायमशाला, खेलों के इलेट्रोनिक गैजेट आदि उपलब्ध किए जाते हैं, जहाँ कर्मचारी लचीले कार्य घंटे में कार्य के इतर कार्यों में जाकर मन बहलाव कर सकते हैं।
अध्ययनों से पता चलता है कि कर्मचारियों को नौकरी की सुरक्षा और लचीली कार्य नीतियाँ प्रदान करने से मनोवैज्ञानिक संकट को कम करने में मदद मिलती है, जिससे मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
ये अभिनव अभ्यास कंपनियों को उच्च उत्पादकता स्तरों को बनाए रखते हुए कर्मचारियों के स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने में मदद करते हैं।
डेलॉयट ने कर्मचारियों की कार्यप्रणाली की समीक्षा के लिए एक समिति का गठन किया है। इसके सीईओ रोमल शेट्टी का कहना है कि कंपनी को कर्मचारियों की भलाई को प्राथमिकता देनी चाहिए और इसका उद्देश्य परिणाम प्राप्त करना है, लेकिन कर्मचारियों के स्वास्थ्य की कीमत पर नहीं।
इस दिशा में कई नए उपाय लागू किए गए हैं, जैसे ‘बैक बेंचर्स’ पहल, जहाँ कर्मचारियों को काम से ब्रेक लेकर अपने मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करने का मौका मिलता है। इसके साथ ही, गोपनीय परामर्श सेवाएँ, लचीले कार्य विकल्प, और अतिरिक्त कल्याण छुट्टियाँ भी दी जा रही हैं। कार्य संस्कृति को सहानुभूतिपूर्ण बनाने के लिए कंपनियाँ कई उपायों पर पुनर्विचार कर रही है।
PwC ने भी AI का इस्तेमाल कर कर्मचारियों की भावनाओं और चिंताओं को समझने के लिए एक नया टूल लॉन्च किया है, जो विशेष रूप से कार्य मूल्यांकन पर फोकस करता है। कुछ शहरों में कंपनियों ने अनिवार्य स्वास्थ्य जांच को लागू किया है, और जूनियर कर्मचारी अब कम समय सीमा के दबाव का सामना कर रहे हैं। KPMG से जुड़ी BSR एंड कंपनी ने अपने कर्मचारियों को काम के बाद अत्यधिक संवाद और मीटिंग से बचने और उचित सीमाओं को बनाए रखने की सलाह दी है। बिजनेस स्टैंडर्ड में प्रकाशित खबरों के आधार पर प्रस्तुत व्यूज।
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