क्या आप लेखन कार्य में दिल से डूब जाते हैं!
नेह इंदवार
क्या आपको लिखने में आनंद आता है क्या आप लेखन कार्य में दिल से डूब जाते हैं और उसके सृजनात्मक दुनिया में खो जाते हैं? दुनिया में ऐसे बहुत से लेखक हैं, जिन्हें लेखन कार्य में डूब कर लिखना अच्छा लगता है। आदतन जिस दिन वे लेखन कार्य नहीं कर पाते, उस दिन उन्हें दैनिक जीवन में कुछ कमी रह जाने का अहसास होता है।
100 साल जीने का रहस्य बताने वाली किताब ‘इकिगाई’ में, किसी गतिविधि में पूरी तरह से डूबे रहने की स्थिति को “प्रवाह” कहा गया है। प्रवाह या Flow एक ऐसी मनस्थिति होती है, जहाँ समय ठहर गया प्रतीत होता है, और आप पूरी तरह से केंद्रित, ऊर्जावान तथा गहन आनंद का अनुभव कर रहे होते हैं। इस अवधारणा को मूल रूप से मनोवैज्ञानिक Mihaly Csikszentmihalyi द्वारा विकसित किया गया था, जिन्होंने प्रवाह को एक मानसिक स्थिति के रूप में वर्णन किया है, जहाँ व्यक्ति किसी सार्थक कार्य में संलग्न होते हुए मेडिटेशन “जोन में” होता है, जो चुनौती और कौशल को संतुलित करता है। एक लेखक के लिए, प्रवाह निश्चित रूप से निरंतर लेखन की धारा के रूप में प्रकट हो सकती है, जहाँ आप गहराई में तल्लीन हो जाते हैं और रचनात्मक प्रक्रिया स्वाभाविक तथा आनंददायक लगती है।
यदि आप लेखन कार्य करते हुए ऐसी स्थिति को प्राप्त करते हैं, तो समझिए प्रकृति ने आपको लेखन कार्य के लिए ही बनाया है, यानी आप नेचरल, स्वाभाविक रूप से कलम के जादूगर हैं । यदि आप लेखन के माध्यम से ही पेशागत या सार्वजनिक कार्य से समाज में कुछ विशिष्ट योगदान देना चाहते हैं, तो लेखन की दुनिया आपके लिए ही बनी है। आप में एक लेखक की आत्मा छुपी बैठी है, बस उसे आपको पृष्टभूमि से निकाल कर बाहर लाने की जरूरत है, लगातार अध्ययन करके आपको उसे निखारना है। अविरल अध्ययन और अभ्यास आपकी प्रतिभा को निखार देगा और आप जिंदगी में एक लेखक के रूप में अपनी पहचान बना लेंगे।
एक लेखक का नज़रिया और सोच औरों से आगे, अलग हट कर होती है। स्वाभाविक रूप से चीजों को अलग नजरिए से देखने, उसका सूक्ष्म निरीक्षण करने, उसकी उपयोगिता, अच्छाई या बुराई को गहराई से देखने के लिए, लेखक के पास एक अलग दृष्टि’लेंस’ होती है।
लेखन के लिए आपके दिल-ओ- दिमाग में गहरी चाहत मौजूद है और आप लेखन को अपने जीवन का एक अभिन्न अंग समझते हैं, तो फिर आपको सृजनात्मक लेखन की दुनिया से कोई विचलित नहीं कर सकता है। बीज के अंदर छुपा हुआ विराट पेड़ परिस्थितियों से लड़कर बाहर निकल ही आता है। लेखन जन्मजात अंकुरित नहीं होता है, उसे प्रशिक्षित करके उस लायक बनाया जाता है। जब दिल में लेखन की ज्वाला धघकती है तो उसका नियमित विकास करके लेखन की बारीकियों को उभारने के लिए उसे मैदान में उतारा जाता है। लेखन एक कला है, यह व्यक्ति के जेहन में समाया हुआ एक अजस्र प्रवाह है।
आपकी भाषा अच्छी है? व्याकरण अच्छा है? घटनाओं के पीछे के मनोविज्ञान, कारक-कारणों को आप तुरंत ताड़ लेते हैं और आप सामान्य वाक्यों में अपने विषय का वर्णन बेहतर और नए ढंग से कर लेते हैं? यदि हाँ; तो समझिए की आपमें एक लेखक के गुण मौजूद हैं, आपको उसे सार्वजनिक मंच पर लाने के लिए प्रेरित करना होगा।
एक लेखक दिल की गहराईयों से लिखता है और पाठक अपना समय देकर ध्यान से उसे पढ़ता है, तो यह लेखक के लिए अत्यंत संतोष की बात होती है। लेखक के शब्द, उनके वाक्य, लेख रचनाएं जब पाठक के जीवन में बदलाव लाती है, तो वह सार्थक लेखन कहलाता है। यह लेखक की सफलता की असली कहानी होती है, उसके लिखने का प्रयास सुफल होता है।
एक लेखक निरंतर लिखने में सुकून पाता है और रोज लिखता है, वह अपने विषय पर उसी तरह फोकस करता है, जैसे टार्च अपने प्रकाश को फोकस करके अंधेरे में भी चीजों को सटीक और स्पष्ट रूप से देखने में मदद करता है। एक सच्चा लेखक अंदर से लेखक होता है, उसे लगातार लेखन भार नहीं लगता, बल्कि वह जीवन संतुष्टि देती है, लेखन के दौरान समय ठहरा हुआ लगता है। एक राइटर को अन्य किसी काम में उतना मन नहीं लगता है, जितना लिखने में, वह लगातार लिखते जाता है लिखना ही उसकी जिंदगी और आत्मा के सुख का अजस्र स्रोत बन जाता है।
रोज दुनिया में कहीं ना कहीं कोई अपनी परिस्थिति, किस्मत और बौद्धिकता के साथ लेखन की दुनिया में कदम रख रहा होता है। वह अपने सृजनात्मक लेखन को समाज और सभ्यता के साथ साझा करता है, उसे अर्पित करता, और दुनिया में कुछ बदलाव लाता है। किसी भी विषय में लिखने के पूर्व लेखक दिमाग में एक आउटलाईन बनाता है। उससे संबंधित अनुषांगिक विषयों पर गहराई से अध्ययन करके नयी जानकारी इकट्ठा करता है और वह कुछ नया दृष्टिकोण तैयार करता है।
यदि आप लिखते हैं, अपने लेखन को शेयर करते हैं, तो आपके शब्दों में छुपी हुई शक्ति किसी अनजान व्यक्ति को किन्हीं विशेष लक्ष्य के लिए प्रेरित कर रही होती है। लेखक की दुनिया से दूर उसके सृजनात्मक शब्दों की दुनिया कहीं की धरती और आसमान को हिला रही होती है। लेखन में वह शक्ति छुपी हुई है, जो किसी महाशक्ति की रक्षा व्यवस्था और सेना में नहीं होती है।
लेखन वह कला है, जो शिक्षित जन की आत्मा में कहीं ना कहीं विराजमान रहती है। जब आप संवेदनाओं से भरी भावनाओं को अपने अंदर से खींचकर बाहर निकालते हैं और उसकी साफ-सफाई करते, उसे तलाशते हुए तराशते हैं, तो वह एक सुंदर मूर्ति की तरह आपके सामने हाजिर हो जाती हैं। जिस तरह एक मूर्तिकार पत्थरों को चीर कर भीतर छुपी मूर्ति को बाहर निकालता है, वैसे ही आप अपनी सोच को शब्दों में पिरो कर उसे दुनिया के सामने प्रस्तुत करते हैं। आप अपने लेखन कला से दुनिया में कोई बदलाव लाना चाहते हैं, या किसी के ह्रदय में प्यार और मानवता का अंकुर फूटाना चाहते हैं, तो आपके कंधो पर यह पावन जिम्मेदारी है कि आप कलम पकड़ें, भावनाओं से परिपूर्ण एक ऐसी रचनात्मक नदी का निर्माण करें. जिसका निरंग जल लोगों की जिंदगी में पझर कर उनके दिमागी प्यास को बुझा दे और उनकी भावनाओं को एक नये मोड़ पर खड़ी कर दे। पाठक की जिंदगी के सुख-दुख की दुनिया में पहुँच कर आप उसे संबल बन कर सहारा दें। इकिगाई की प्रवाह की गहराईयों तक पहुँचने के लिए आप सर्वजन सुखाय सर्वजन हिताय के लिए लगातार कलम चला कर जीवन में अपार संतुष्टि का अनुभव करें।
‘लेखन-कला’ व्यक्ति के दिल-ओ-दिमाग पर उत्पन्न हो रहे भावों को व्यक्त करने की एक प्राकृतिक कला है। लेखन कला का विकास सिर्फ लेखक बनने के लिए ही नहीं, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में अपने भावनाओं के सर्वोतम भावों को सर्वश्रेष्ठ ढंग से लिखकर व्यक्त करने और अपने व्यक्तित्व के भीतरी आत्मा को प्रकट करने का एक जरिया भी है। जब आप अच्छा लिखते हैं, लोगों को आपका लिखना पढ़कर अच्छा लगता है, वे आपकी प्रशंसा करते हैं, तो आप अपने भीतर छिपी हुई लेखन कला के महत्वपूर्ण तात्विक भावना को महसूस करते हैं।
लेखन कला का विकास कई तरह से किया जा सकता है, इसका विकास आप अपने लिए कर सकते हैं। लेखन कला के विकास से संबंधित दिए गए सुझावों को देकर आप अपने घर परिवार, अपने दोस्तों, अपने बच्चों के लेखन में सुधार ला सकते हैं। उन्हें टिप्स देकर लेखन कला के विकास के सूत्र बता सकते हैं।
हजारों लोग लेखक बनना चाहते हैं, अपने लेखन कला का विकास करना चाहते हैं उसे दुनिया के सामने लाना चाहते हैं, लेकिन लेखन कला के कुछ ऐसे टिप्स से अनजान होते हैं, जिसको उपयोग में लाकर अपने लेखन कला का विकास कर सके और एक कामयाब लेखक बन सकें। लेखन कला के तीर से अनजान लोग लिखते-लिखते एक दिन हार जाते हैं और अपने लेखन कला के प्रशंसक नहीं मिलने पर वे लेखक बनने का विचार ही छोड़ देते हैं, यह एक निराशाजनक स्थिति होती है। जरूरत है कि लेखन कला के विकास के लिए छोटी-बड़ी टिप्स को दिमाग में बैठाएँ, फीडबैक प्राप्त करके, शब्दावली का विस्तार कर अपने पाठकों की राय लें और नये मंजिल की ओर चलें।
किसी भी कार्य या स्किल को सीखने में न्यूनतम छह माह या साल लग जाता है। एक धांसु, शब्दों का जादूगर बनने में सालों लग सकते हैं। लेकिन जब आप उस क्षेत्र के स्किल्ड व्यक्ति बन जाते हैं तो उसी कार्य में ही डूब कर आपको आनंद आने लगता है। आपकी मनस्थिति में एक प्रवाह का सृजन हो जाता है और आपको उसमें खो जाना अच्छा लगता है। इसलिए यदि आप लेखक बनना चाहते हैं तो कम से कम एक साल तक अपने तमाम समय और ऊर्जा का निवेश करें। रिजल्ट एक दिन सामने दिखाई पड़ेगा ही।
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